सेवक को तब परखें जब वह काम ना कर रहा हो, रिश्तेदार को किसी कठिनाई में , मित्र को संकट में , और पत्नी को घोर विपत्ति में.-चाणक्य
There is no austerity equal to a balanced mind, and there is no happiness equal to contentment; there is no disease like covetousness, and no virtue like mercy.-Chanakya
संतुलित दिमाग से जैसी कोई सादगी नहीं है, संतोष जैसा कोई सुख नहीं है, लोभ जैसी कोई बीमारी नहीं है,और दया जैसा कोई पुण्य नहीं है.-चाणक्य
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