Kabir Amrit Vani Aur Dohe
कबीर दास जी के दोहे और सुविचार
नमस्कार दोस्तों, आज सुविचार के इस ब्लोग में आपको कबीर दास (Kabir Das) के दोहे की चर्चा करेंगे और उससे कुछ अनमोल वचन को समझेंगे। कबीर दास भारत के सबसे सम्मानित और प्रभावशाली कवियों (respected and influential poets) में से एक थे। इन्होंने भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक ताने-बाने पर एक अमिट छाप छोड़ी। इनके द्वारा रचित दोहे बहुत सरल और शक्तिशाली शब्दों से गढ़े हुए है जो बहुत सारे ज्ञान को समाहित किये हुए है। हम यहां पर कबीर दास के दोहे - अमृत वाणी (Amrit Vani) को पढ़ेंगे जो कबीर दास जी के शिक्षाओं के सार को उजागर करता है तथा हमें अपने अंदर की गहराइयों तक सोचने के लिए प्रेरित करता है। तो चलिए फिर इनके कुछ दोहे को पढ़ते हैं तथा प्रेरित और मार्गदर्शन के इस ब्लोग में गोता लगाते हैं।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिल्या कोय; जो मन देखा अपना, मुझसे बुरा ना कोय। - कबीर दास
कबीर जी के इस दोहे का अर्थ यह है कि अगर मैं किसी बुरे आदमी की तलाश में गया तो कोई भी बुरा नहीं मिला लेकिन जब मैं अपने हृदय को टटोला, तो मुझे मुझसे बुरा कोई नहीं मिला। कहने का मतलब यह है कि किसी बुरे आदमी की तलाश करने से पहले अपने अंदर की बुराई को देखना चाहिए। अगर आप सही है तभी आप किसी को बात सकते हैं कि वे गलत है। नहीं तो आपको कोई हक नहीं बनता कि आप किसी की गलती को उजागर करें।
कबीर दास जी के दोहें से हम क्या शिक्षा मिलती है?
जैसे की हमने आपको एक कबीर जी के दोहे और उसके अर्थ को जाना और समझा की उसमें कितनी गहरी और ज्ञान की बातों को पिरोया गया है। ऐसे ही इनके अन्य दोहे को पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि उसमें कितनी अधिक आध्यात्मिक ज्ञान और व्यावहारिक जीवन (spiritual knowledge and practical life) के पाठ को संजोया गया है। कबीर दास जी ने अपने दोहे को 15वीं शताब्दी में लिखे थे। इनके दोहे से हमें प्रेम, विनम्रता, आत्म-बोध और परमात्मा के विषयों को समझने का एक मौका मिलता है। कबीर दास जी काव्यात्मक अभिव्यक्तियाँ धार्मिक सीमाओं से परे हैं और जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को अपने दोहे के माध्यम से आकर्षित करते हैं। उनके द्वारा दोहों में पिरोये गये शब्द आत्मनिरीक्षण का आह्वान करते हैं और हमारे भीतर निहित शाश्वत सत्य की याद दिलाते हैं। चलिए फिर कबीर दास जी के कुछ अन्य दोहों को पढ़ते हैं और अपने ज्ञानकोष को बढ़ाते हैं।
पोथी पढ़ पढ़ि जग उदास, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम के, जो पढ़े सो पंडित होय।। - कबीर दास
कबीर दास जी इस दोहें के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि इस संसार में आप चाहे कितने भी शास्त्र को पढ़ लें आपको एक दिन मृत्यु के द्वार पर पंहुचना ही है। इसलिए आप सबसे पहले प्रेम के ढाई अक्षर को समझने का प्रयास करें क्योंकि यही वह है जिससे द्वारा आप लोगों के लिए प्रेमी बन सकते हैं अथार्त लोगों के लिए प्रिय और अच्छे व्यक्ति बन सकते हैं।
साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये,
मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाए - कबीर दास
इस दोहे के माध्यम से कबीर दास जी कहना चाहते हैं कि हे साईं मुझ पर इतना कृपा कीजिए की मैं अपने परिवार का भरण-पोषण सकूं और मैं भी भूखा न रहूं और कोई मेरे द्वार पर भिखारी भी आता है तो में उसे कुछ दे संकू।
चलिए अब कबीर दास के अन्य दोहें को जानते और समझते हैं तथा उससे कुछ शिक्ष लेकर अपने जीवन में अमल करते हैं।
कबीर दास के दोहें और अमृत वाणी को समझते है-
Kaal kare so aaj kar, aaj kare so ab;pal mein parlay hoyegi, bahuri karega kab? - Kabir Das
अर्थ : कबीर जी कहते है कि मैं जब इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न दिखाई दिया और जब मैंने अपने मन के अंदर झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा तो कोई नहीं है।
Kabira khada bazar mein, sabki mange khair;na kahu se dosti, na kahu se bair. - Kabir Das
अर्थ : कबीर जी कहते है कि बड़ी बड़ी पुस्तकें को पढ़ कर संसार में कितने ही व्यक्ति मृत्यु के द्वार पहुँच गए, लेकिन सभी विद्वान न हो सके. वह यह भी मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार से केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले अर्थात वह प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी हो जाता है।
Moko kahan dhoonde re bande, main to tere paas mein;na teerath mein, na murat mein, na ekant niwas mein. - Kabir Daas
अर्थ : कबीर जी कहते है कि इस संसार में ऐसे व्यक्तियों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है कहने का अर्थ यह है कि जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे।
अर्थ : कबीर जी कहते है कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा नहीं करनी चाहिए जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। अगर कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ जाता है तो बहुत अधिक पीड़ा होती है।
अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि मन में धीरज रखने से सब कुछ प्राप्त होता है और यदि कोई भी माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो समच आने पर ही आयेगा।
अर्थ : कबीर दास जी किसी व्यक्ति को सलाह देते हुए कहते हैं कि कोई व्यक्ति चाहे लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला फेरता रहे हैं, लेकिन उसके मन का भाव नहीं बदल सकता और न ही उसके मन की हलचल शांत होगी क्योंकि किसी भी व्यक्ति को हाथ की माला फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलना चाहिए।
अर्थ : इस दोहे में कबीर दास जी कहते है कि सज्जन व्यक्ति की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना की कोशिश करनी चाहिए। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कभी भी तलवार का मूल्य होता है उसकी मयान का नहीं।
अर्थ : कबीर दास जी इस दोहे में कहते है कि मनुष्य में एक प्रकार का ऐसा स्वभाव होता है कि जब वह दूसरों के दोष पर हंसता है तो उसे अपने दोष याद नहीं आते। इसका कभी न अंत है और न आदि।
अर्थ : इस दोहे में कबीर दास जी ने मेहनत के बारे में बताया है और कहा है कि जो व्यक्ति प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ उसी प्रकार से पा लेते हैं जिस प्रकार से कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी के अंदर जाता है और कुछ प्राप्त करके आता है लेकिन कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रहते हैं और कुछ भी नहीं करते।
अर्थ : इस दोहे में कबीर दास जी ने मेहनत के बारे में बताया है कि यदि कोई सही रूप से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न समान हो जाती है। इसलिए कभी भी बोली को ह्रदय के तराजू में तोलकर ही मुंह से बाहर आने देना चाहिए।
अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि हमें कभी भी न तो अधिक बोलना चाहिए और न ही जरूरत से ज्यादा कम क्योंकि यह ठीक उसी प्रकार से है। जैसे कि बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं होती और बहुत अधिक धूप भी अच्छा नहीं कम।
अर्थ : कबीर दास जी ने इस दोहे में कहा हैं कि जो हमारी निंदा करता है, उस व्यक्ति के अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो ऐसा व्यक्ति होता है जो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ बनाता है।
अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि इस मनुष्य का जन्म मुश्किल से होता है। यह मनुष्यों का शरीर उसी तरह बार-बार नहीं प्राप्त होता जिस प्रकार वृक्ष से पत्ता झड़ जाया करता है और दोबारा डाल पर नहीं आता।
अर्थ : कबीर दास जी कहते है कि जब इस संसार में आऐ हैं तो अपने जीवन से यही तमवा रखना चाहिए कि सब जनो का भला हो और संसार में अगर किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी न करें।
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