सम्भव और असम्भव - Possible and Impossible
असम्भव सिर्फ सोच का कमाल-
कई सालों पहले, चार मिनट में एक मील तक दौड़ना
नामुनकिन कार्य माना जाता था। लेकिन धावक रोजर बैनिस्टर ने इस भ्रम को तोड़ दिया। उसने
3:59 मिनट में दौड़कर यह दूरी तय की। उसने
अपनी जीत का मानसिक चित्रण किया जिससे शरीर की नर्वस प्रणाली ने इस प्रकार सिग्नल
ग्रहण किए कि उसे यह विश्वास हो गया कि मुझे सफलता जरूरी मिलेगी। बैनिस्टर की
सफलता ने दूसरे धावकों के लिए भी रास्ते खोल दिए। इसके बाद तो एक साल में ऐसे कई
धावक हो गए जिन्होंने इस असंभव कार्य को कर डाला।
आपको अपने दिमाग से रूकावटों के घेरे को
तोड़ने की तथा असंभव को संभव बनाकर चलने की जरूरत है। इससे आपके तथा आपके आस-पास
के लोगों का जीवन ही बदल जाएगा।
दिमाग की समतल प्रक्रिया-
जब कभी हम किसी घटना से रूबरू होते हैं
तो हमारा दिमाग उस घटना को दर्द या खुशी के रूप में अपने अंदर स्टोर कर लेता है।
यह वर्गीकरण इस विश्वास पर होता है कि आप किसी घटना को किस तरह दर्द या खुशी के
रूप में महसूस करते हैं। यह ठीक है कि हमारी सामान्य स्थिति हमसे कार्य कराती है
लेकिन उसकी भी एक सीमा होती है। कुछ लोग अपने आपको नालायकों की श्रेणी में रखते
हैं क्योंकि उन्होने जीवन में कई बार असफलता का सामना किया होता हैं। इस तरह से
अपने आपको किसी श्रेणी में बांटना एक आदत बन सकता है जो संभव को भी असंभव बनाने के
रास्ते खोलता है।
क्या आप अपने सीमित मूल्यांकन की दूसरे
लोगों के साथ तुलना करते हो? क्या कोई अपवाद है?
सही प्रश्न पूछकर अपनी बुरी आदत को बदलें-
हो सकता है कि आपने कई बार अपना वजन कम
करने कोशिश की हो लेकिन हर बार आपको असफलता ही हाथ लगी हो। क्या आपने अपने आपसे
पूछा है? कि कैसे मेरा पेट
भरेगा? मेरा मनपसंद तला हुआ भोजन कौन-सा है? इसके अलावा अपने आपसे पूछा जाए कि किस
भोजन से मुझे ताकत मिलेगी? कौन-सा हल्का सूप
मुझे ऊर्जा प्रदान करेगा? अगर आप भी खाने के
प्रति लालायित हों कि इसे खाने से मेरा कितने किलो वजन बढ़ेगा? फिर क्या मैं अपने मकसदों में सफल हो
पाऊंगा?
प्रश्नों में बदलाव आपकी गलत आदतों में
बदलाव लाएगा तथा आपके जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा।
आप क्या चाहते हैं कि इस विषय पर सोचें
या न सोचें। उदाहरण के लिए धूम्रपान छोड़ने के बारे में सोचने की बजाय यह सोचें कि
किस तरह स्वस्थ रहा जा सकता है। इससे आपको मुख्य बिन्दु पर ध्यान केन्द्रित करने
में सहायता मिलेगी तथा आपके लिए उद्देश्य को प्राप्त करना आसान होगा। आप क्या
चाहते हो तथा इसमें क्या रूकावट है इसे पहचानों।
सही प्रश्न- बदलाव को खुशी से
जोड़ें तथा दुःख को किसी बदलाव से नहीं।
अगर मैं इसमें बदलाव नहीं लाता तो इसका
मुझ पर क्या असर पड़ेगा।
मेरे लिए यह बदलाव कितना महत्त्वपूर्ण
है? क्या मैं कुछ खोऊंगा?
अपने भावनात्मक, शारीरिक, आर्थिक तथा
आध्यात्मिक पहलू का मूल्यांकन करें।
क्या यह मेरे कार्य तथा संबंध पर प्रभाव
डालेगा?
अब अपने आपसे प्रश्न
पूछें-
जब मैं इसमें बदलाव लाऊंगा तो खुद के
बारे में कैसा महसूस करूंगा?
इसमें बदलाव लाकर मुझसे सबसे अधिक प्रेम
करने वाला व्यक्ति कैसा महसूस करेगा?
इसमें बदलाव लाकर मैं कितना खुश रह
पाऊंगा?
किसी से प्रेरणा लेकर या किसी को अपने
जीवन का आदर्श बनाकर उसके नक्शे-कदम पर चलकर किसी क्षेत्र में सफलता पाने की कोशिश
करना आपके लिए नया प्रश्न है। ऐसा अनुभव जिसे आप आत्मसात करने की इच्छा रखते हैं।
सही प्रश्न प्रणाली
किस तरह काम करती है?-
आप जिस चीज की खोज कर रहे हैं, उसके
प्रति पूरी तरह जागरूक रहें। नीचे दिए गए अनुभवों को उदाहरण के तौर पर अपनाने का
प्रयास करें। इसे एक अपरिचित क्षेत्र में करें। एक मिनट तक अपने आस-पास के माहौल
पर विचार करें तथा अपने आपसे सवाल करें-
“मैं पीला रंग
कहां-कहां पर देखता हूं?” उस रंग संबंधित सभी
जानकारियां अपनी नोटबुक में लिख लें। इसके बाद अपनी आंखों को बंद कर लें। अपने
आपको हरे रंग में रंगा हुआ महसूस करें। इससे संभावना यह होगी कि आपको भूरे रंग से
संबंधित सारे बातें याद रहें लेकिन हरे रंग के बारे में दिमाग में कुछ प्रकट न हो।
अब अपनी आंखें खोलें, आपको सब कुछ हरा-हरा महसूस होगा।
इसे अपने बाथरूम के
शीशे पर चिपकाएं-
इस समय मैं किस वजह
से खुश हूं?
इस समय मैं किस वजह
से अपने आपको आनंद में डूबा हुआ महसूस कर रहा हूं? वह
क्या चीज है जो मुझे आनंद प्रदान करती है?
मैंने आज क्या दिया
है? मेरा उसमें क्या सहयोग है?
मैंने आज क्या सीखा
है? मैंने क्या कुछ नया किया है?
किस तरह आज मेरे जीवन
की गुणवत्ता में बढ़ोतरी हुई है? आज किया गया निवेश
भविष्य में मुझे किस तरह लाभ प्रदान करेगा।
प्रश्नों को प्रभावशाली
बनाएं- नेगेटिव (नकारात्मक) पलों में रुकावट डालने के लिए अपने आपसे सवाल करें “इसमें क्या खास बात है”? याद रखें, हम अपने अनुभव के साथ कोई भी
संबंध या अर्थ स्थापित कर सकते हैं। दूसरा पूछे जाने वाला प्रश्न है- ‘क्यों’
की अपेक्षा ‘कैसे’ पर, केन्द्रित ध्यान (फोकस) का प्रयोग
समाधान के लिए किस प्रकार किया जा सकता है?
इन प्रश्नों को सुबह के प्रश्नों में
शामिल करें। अपने जीवन की खास घटनाओं के साथ अर्थ और संबंध जोड़ने के लिए सिर्फ हम
ही जिम्मेदार हैं। यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हमे नेगेटिव (नकारात्मक)
परिस्थितियों का सामना नेगेटिव (नकारात्मक) तरीके से करना है या पोजीटिव
(सकारात्मक) तरीके से। यह चुनना आपके ऊपर है कि अगर आपको संसार की तरफ से दर्द
मिला है तो बदले में क्या आप भी संसार को दर्द देना चाहेंगे या बेहतर बनाने की
कोशिश करोगे या आपके साथ अच्छा व्यवहार किया गया है तो आप दूसरों के प्रति अधिक
संवेदनशील होना चाहोगे।
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