नकारात्मक सोच क्यों गलत है?
जब मनुष्य विचारों को
अपने दिमाग में बैठाता है तथा भावनाओं के साथ उसका तालमेल करता है तो प्रेरणादायक
शक्ति का निर्माण होता है। यह शक्ति मनुष्य के हर कार्य, क्रिया तथा मनोवेग को
संचालित तथा नियंत्रित करती है।जो विचार भावनाओं के साथ मिश्रित हो जाते हैं, वे
चुम्बकीय शक्ति का निर्माण करते हैं। फिर उसी तरह के अन्य विचारों को यह शक्ति
अपनी ओर आकर्षित करती है।इस प्रकार विचारों को भावना के साथ चुम्बकीय बल प्रदान
करें फिर उस बीज के साथ तुलना करें जिसे जब उपजाऊ मिट्टी में दबा दिया जाता है तो
वह अंकुरित हो जाता है तथा फिर विभिन्न शाखाओं व बीजों में फैलता जाता है। जब तक
कि उस एक बीज के असंख्य बीज न बन जाए। इसी प्रकार अगर आप नकारात्मक विचार दिमाग
में लाएंगे तो यह कई गुणा पल्लवित होकर आपके दिमाग को घेरे रखेंगे। तो क्यों न
सकारात्मक सोच अपनायी जाए।
भीतरी प्रेरणा द्वारा निश्चय-तुरंत सफलता की कुंजी है
ऐसे लगभग 25,000 पुरूषों तथा स्त्रियों का विश्लेषण किया गया जिन्होंने
असफलता का सामना किया था। उन्होनें यह बताया कि निश्चय तथा निर्णय लेने में कमी उनकी
असफलता के कारणों में मुख्य थी। विभिन्न विश्लेषणों से ज्ञात हुआ कि लगभग सभी में
तुरंत परिणाम तक पहुंचने की जल्दी थी। जब उन्होंने धीरे-धीरे अपने आपमें बदलाव
किया तो वे भी आगे बढ़ते गए। ऐसे लोग जो अपने पूरे जीवन में धन इकट्ठा नहीं कर पाए
उनमें से कुछ को छोड़कर बाकी सभी में तुरंत ही परिणाम प्राप्त करने की प्रवृत्ति
थी।
जो लोग तुरंत निर्णय
लेना जानते हैं वे इस बारे में निश्चिंत होते हैं कि वे क्या चाहते हैं। ऐसे लोग
साधारणतः सफलता पा लेते है। जीवन के हर क्षेत्र में नेता तुरंत निर्णय लेता है।
यही कारण है कि वे नेता है। दुनिया में ऐसे लोगों के लिए जगह होती है जिनके कर्म
तथा बातें यह बताते हैं कि उन्हें कहां जाना है।
प्रार्थना का वैज्ञानिक आधार-
अगर आप अवलोकन करने वाले व्यक्ति हैं तो आपने जरूर एक बात पर
गौर किया होगा कि ज्यादातर लोग प्रार्थना की तरफ तभी मुड़ते हैं जब सब तरफ से
निराश हो चुके होते हैं। सब तरफ से निराश होने के कारण वे प्रार्थना की तरफ भी
संदेह, शक तथा डर की भावना लिए हुए जाते हैं।
अगर आप किसी चीज को
पाने के लिए प्रार्थना करते हैं लेकिन मन में अविश्वास भी रखते हैं कि अगर वह न
मिली या प्रार्थना फलित न हुई, तब क्या होगा। इसका मतलब है आपकी प्रार्थना में
विश्वास की कमी है।
अगर आपको पिछली ऐसी
प्रार्थना का अनुभव है जिसको करने से आपको मन चाही मुराद मिल गई थी तो वापस उसी
स्थिति तथा मैमोरी में पहुंचे तथा उन परिस्थितियों को याद करें। तब आप पाएंगे कि
आप सकारात्मक मनोस्थिति के साथ प्रार्थना करने के लिए तैयार हो रहे हैं.
अगर आप रेडियों के
कार्य सिद्धान्त को समझते हैं तो जरूर जानते होंगे कि ध्वनि को तब तक संप्रेषित
नहीं किया जा सकता जब तक कि तरंगों की दर में बदलाव न किया जाए। जिन्हें मानव के
कान ग्रहण करते हैं। रेडियों स्टेशन मनुष्य की आवाज ग्रहण करके तरंगों के रूप में
भेजता है। इस तरह आकाश द्वारा ही ध्वनि ऊर्जा को संप्रेषित किया जा सकता है। इसके
बाद बदलाव की प्रक्रिया होती है। ऊर्जा जो तरंगों के रूप में थी उसे ध्वनि के रूप
में पहचाना जाता है।
इस प्रकार इंसान का
अवचेतन मन रिलेकेन्द्र (बिचौलिए) की भूमिका निभाता है। जो प्रार्थना को असीमित समझ
के रूप में पहचानकर, सूचना भेजता है तथा प्रार्थना विशिष्ट योजना के रूप में वापस
ग्रहण करता है। इस सिद्वान्त को समझने से आप यह जान पाएंगे कि प्रार्थना की जगह
बैठकर कुछ मन्त्र उच्चारण करने से आपके मस्तिष्क तथा असीमित समझ में संप्रेषण के
तार जुड़ नहीं पाएंगे।
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