मनुष्य का स्वभाव, आईना से कम नहीं
किसी मनुष्य का उठना और बैठना या फिर उसका रहन-सहन या उसके बात करने का तरीका ,उसके बारे में सब कुछ बयान कर देता है। इसलिए कहा जाता है कि इन्सान का स्वभाव, आईना से कम नहीं कभी नहीं होता।
मनुष्य चाहे कितना भी पढ़-लिख जाये या फिर कितना भी अमीर हो जाये लेकिन उसके बातचीत के स्वाभाव से उसके संस्कारों का पता लग ही जाता है।
इसलिए हमे अपने संस्कारों को कभी भी नहीं भुलना चाहिए। अपने संस्कार तथा स्वभाव पर ध्यान देना बहुत ही जरूरी है। कहते हैं न कि यदि बच्चों में अच्छे संस्कार और स्वभाव पैदा करना है तो उसके सामने हमें अपने अच्छे संस्कार तथा स्वभाव प्रस्तुत करते रहना चाहिए। किसी ने सही ही कहा है कि एक श्रेष्ठ बालक का निर्माण करना, सौ विद्यालयों का निर्माण करने से बेहतर होता है।
आपने कई बार ऐसा देखा होगा कि कई व्यक्तियों कि आदतें उसके स्टेटस के बुल्कुल भी मेल नहीं खाता।
इसी को ध्यान में रखते हुए मैं एक बहुत ही पुरानी कहानी प्रस्तुत करने जा रहा हूं। आशा करता हूं यह आपको बहुत ही पसंद आयेगी।
बहुत पुराने समय की बात है, राजा के दरबार में एक अजनबी व्यक्ति नौकरी मांगने के लिए हाजिर हुआ। वहां पर उससे उसकी क़ाबलियत पूछी गई। इसके बाद उसने बताया कि मैं एक सियासी हूँ। इसके बाद राजा ने उसे घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज दे दिया और काम पर लगा दिया। कुछ दिनों बाद राजा ने उसे अपने सबसे अजीज घोड़े के बारे में पूछा तो उसने राजा को बताया कि घोड़ा नस्ली नहीं है। राजा को बहुत अदिख ताज्जुब हुई। उसने जंगल से घोड़े की जानकारी वाले को बुलाया। इसके बाद उसने बताय कि घोड़ा नस्ली नहीं है इसकी पैदायश पर इसकी मां मर गई थी और यह एक गाय का दूध पीकर उसके साध बड़ा हुआ है। फिर इसके बाद राजा ने उस सियासी को बुलाया और पूछा कि तुमको कैसे पता चला घोड़ा नस्ली नहीं है?
इसके बाद उने राजा को बताया कि यह गाय कि तरह सर को नीचे करके घास खाता है जबकि नस्ली घोड़ा घास को मुहं में रखकर सर को उपर उठा खाता है। इसके राजा बहुत खुश हुआ और उसे बहुत सारा इनाम दिया।
इसके साथ ही उसे रानी के महल में काम करने के लिए लगा दिया। कुछ दिने बाद राजा ने उससे रानी के बारे में राय मांगी तो उसे कहा कि तौर तरीके से रानी जैसे है लेकिन राजकुमारी नहीं। ऐसा सुनकर राजा के पैरों तले जमीन निकल गई और इसके बाद अपने सास को बुलाया और पूछताछ की तो पता चला कि उनकी बेटी जन्म लेने के 6 महीने बाद मर गई थी और इसके बाद उन्होने बच्चे को गोद लिया था जो आपकी रानी है।
इसके बाद राजे ने सियासी से पूछा आपको कैसे पता चला ?
फिर सियासी ने कहा कि रानी का आचरण नौकरों के साथ मूर्खों से भी बदतर है। एक खानदानी इन्सान का आचरण दूसरों के प्रति अच्छा होता है जो कि रानी में है नहीं।
राजा एक बार फिर उससे बहुत खुश हुआ और बहुत से अनाज और भेड़ बकरिया उसके इनाम में दिया। कुछ दिन के बाद राजा ने सियासी को बुलाया और अपने बारे में पूछा तो उस पर सियासी ने कहा कि जान कि खैर हो तो मैं बताऊ। राजा ने वादा किया कि बताओ आपको कुछ नहीं होगा। फिर उसने राजा को कहा कि न तो आप राजा के पुत्र लगते हैं और न ही आपके अंदर राजा वाला गुण है। राजा को बहुत गुस्सा आया लेकिन उसने सियासी से वादा किया था इसलिए उसने उसे कुछ नहीं कहा। उसने अपनी मां को बुलाया पूछा। उसकी मां ने कहा कि हमारा औलाद नहीं था इसलिए हमने एक चरवाहे के बेटे को गोद लिया था जो कि तुम हो। फिर उसने सियासी से पूछा कि तुमको कैसे पता चाला तो उसने कहा कि राजा किसी को इनाम में हीरे मोती जवाहरात देता है न कि भेड़, बकरियां और खाने की चीज। इसलिए आपका चाल चलन चरवाहे के बेटे कि तरह है, किसी राजा की तरह नहीं।
अतः इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है किसी भी मनुष्य का आचरण उसके चरित्र को बता देता है। हमारी रहन-सहन और स्वभाव हमारे बारे में सब कुछ बताता है कि हम क्या है।
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धन्यवाद।।