Main Menu

सोशल मीडिया : गंदी बात के लिए बिगड़े लड़को का सॉफ्ट टारगेट युवतियां क्यों होती है

सोशल मीडिया : गंदी बात के लिए बिगड़े लड़को का सॉफ्ट टारगेट युवतियां क्यों होती है


आजकल सोशल मीडिया (Social Media) पर लड़कियों को गंदी बात के लिए सॉफ्ट टारगेट (Soft Target) बनाया जा रहा है और इसको अंजाम बिगड़े लड़के देते हैं। छेड़छाड़ करने वाले इन युवकों को लगता है सोशल मीडिया पर उनकी इन कारनामों को पकड़ा नहीं जा सकता है, लेकिन वे अब समहल जायें क्योंकि 1090 की साइबर टीम किसी भी युवती की शिकायत मिलने पर तत्काल कार्रवाई कर सकती है। पिछले साल 2017 में साइबर अपराध लगभग 3990 दर्ज हुए थे। जबकि इस साल 2018 के अक्टूबर महीने तक लगभग 12850 छेड़खानी की शिकायतें दर्ज हो चुकी हैं। सोशल मीडिया पर इन बढ़ते अपराध के आंकड़े यह साबित करते हैं कि अपराध बहुत अधिक हो रहा है अब युवतियों को चुप नहीं रहना चाहिए बल्कि शोषण का सामना डट कर करना चाहिए।


हमारा देश दिन प्रतिदिन हाईटेक बनता जा रहा है और इसके साथ साथ ही बिगड़े लड़के का छेड़खानी का तरीका भी बदल गया है। इसका अंदाजा तो इस बात से लगाया जा सकता है कि विमिन पॉवर लाइन में बहुत सारे मामले दर्ज हुए है छेड़खानी के आकड़े इस बात को बयां कर रहे हैं। फेसबुक और वॉट्सऐप पर सक्रिय युवतियां छेड़खानी के लिए सॉफ्ट टारगेट बन रही हैं। सबसे अधिक कॉलेज में जाने वाले युवतियां निशाने पर हैं। इस तरह के मामलों से युवतियों को सतर्क रहने की जरूरत है। अब इसको रोकने के लिए विमिन पॉवर लाइन (1090) की ओर से जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है जो कि बहुत ही अच्छी बात है। 
देखना तो यह दिलचश्प होगा कि इस जागरूकता का असर कितना अधिक होता है।

सोशल मीडिया पर छेड़खानी को मुहं तोड़ जवाब देने के लिए सुविचार


1. सोशल मीडिया पर बुरी बात करना बंद करों, यह सही जगह नहीं है, यह आपके घर जैसा है, कोई भी अपना घर गंदा नहीं करता तो फिर ये क्यों?

2. महिलाओं के अपराध और समाज जैसे अपराधों को रोकने के लिए ऐसे अपराधों को रोकने के लिए आरोपी के खिलाफ आवाज को मजबूत करना होगा। बच्चों का पहला शिक्षक एक मां है। जो उन्हें जीवन की गुड्स और बैड के बारे में जागरूक करता है। अगर महिला शिक्षा को नजरअंदाज कर दिया गया था, तो यह देश के भविष्य के लिए किसी भी खतरे से कम नहीं होगा।

उच्च शिक्षा हमें
उच्च विचार,
उच्च आचार,
उच्च संस्कार और
उच्च व्यवहार के साथ ही समाज की समस्याओं का
उच्च समाधान भी उपलब्ध करती है।
मेरा आग्रह है कि विद्यार्थियों को कालेज, यूनीविर्सिटी के क्लास रुम में तो ज्ञान दें हीं लेकिन उन्हें देश की आकांक्षाओं से भी जोड़ें.
 

किडनी के लिए खतरनाक है मिलावटी दूध - Contaminated Milk

किडनी के लिए खतरनाक है मिलावटी दूध

डॉक्टरों का कहना है कि दो साल तक लगातार मिलावटी दूध (Adulterated milk) पीते रहने पर लोग Intestine, लिवर या किडनी डैमेज (Kidney damage) जैसी Disease के शिकार हो सकते हैं। Indian food security एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के हालिया अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि भारत में बिकने वाला करीब 10 प्रतिशत दूध हमारे Health के लिए Harmful है। इस 10 में से 40 प्रतिशत मात्रा Packaged milk की है जो हमारे हर दिन के भोजन में इस्तेमाल में आता है। यह 10 प्रतिशत Contaminated milk यानी दूषित दूध वह है, जिसकी मात्रा में वृद्धि दिखाने के लिए इसमें यूरिया, ग्लूकोज, वेजिटेबल ऑयल या अमोनियम सल्फेट आदि मिला दिया जाता है।

डॉक्टरों के अनुसार, मिलावटी या Contaminated milk से होने वाला नुकसान इस बात पर निर्भर करता है कि कॉन्टैमिनेशन कैसा है। अगर दूध में बैक्टीरियल कॉन्टैमिनेशन है तो Food poisoning, पेट दर्द, Diarrhea, Intestine Infection, उल्टी, Loose motion होने का डर होता है। कई बार मिनरल्स की मिलावट होने पर हाथों में झनझनाहट या Joint pain भी शुरू हो जाता है। वहीं, अगर दूध में Insecticide या Chemicals की मिलावट है या Packaging में गड़बड़ है तो इसका पूरे शरीर पर लंबे समय के लिए बुरा प्रभाव पड़ता है। इस तरह के मिलावटी दूध को काफी समय से यानी करीब दो साल तक लगातार पीते रहने पर आप Intestine, लिवर या किडनी डैमेज जैसी Dangerous diseases के शिकार हो सकते हैं। Contaminated milk में कुछ ऐसे केमिकल की मिलावट भी होती है जिनसे Carcogenic problems हो सकती हैं। अगर आप 10 साल तक इस मिल्क प्रॉडक्ट को ले रहे हैं तो कैंसर जैसी Severe illnesses होने की संभावना हो सकती है।

कम करें प्रभाव (Reduce effects)

डॉक्टरों के अनुसार, Poshchrified milk होता ही इसलिए है ताकि सेहत को उससे कोई नुकसान न पहुंचे। लेकिन अगर वह भी Contaminated हो तो आप इसमें बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। हालांकि, टेट्रा पैक को प्रमुखता देकर कुछ हद तक इससे बचा जा सकता है। Tetra pack में Plastic exposures कम होने की वजह से वह Plastic pack से कम दूषित होता है।

बचाव (Rescue):  डॉक्टरों के अनुसार, दूध को सही तरह से उबालकर इसके भीतर के Simple injection वाले बैक्टीरिया को हटाया जा सकता है। साथ ही, इसे हमेशा Refrigerate करके रखें और भूलकर भी खुला न छोड़ें।

मिलावटी दूध पर सुविचार

1. मिलावटी दूध और मिलावटी पनीर पर
WHO ने चेताया - नहीं रुकी
मिलावटखोरी तो ........2025 तक भारत के 87% नागरिक कैंसर से पीड़ित होंगे

2. FSSAI की एक स्टडी के मुताबिक भारत में बिकने वाला करीब 10 फीसदी दूध हमारी सेहत के लिए हानिकारक है।

प्राकृतिक चिकित्सा से संबंधित कुछ खास तथ्य - स्वास्थय विचार

Prakritik Chikitsa (Naturopathy )

योग को भी प्राकृतिक चिकित्सा का ही अंग माना गया है। योग की सहायता से मन शांत रहता है। प्राणायाम और योगासन के भी फायदे हैं। योग की मदद से शरीर के अंदर के अंग मजबूत होते हैं। वहीं एक्सरसाइज से शरीर का बाहरी हिस्सा मजबूत होता है। ध्यान करने से मानसिक शक्ति भी बढ़ती है।
प्राकृतिक चिकित्सा से संबंधित कुछ खास तथ्य

प्राकृतिक चिकित्सा सेंटर पर बीमारियों के अनुसार कई दूसरे तरीके भी हैं जिनसे इलाज किया जाता है। इनमें हाइड्रोथेरपी का खास रोल है। मसलन कटि स्नान, मेरुदंड स्नान, स्टीम बाथ, धूप स्नान, मड स्नान, एनिमा आदि। इसके अलावा मालिश भी एक तरीका है।
कुदरत के साथ रहकर भी हम कुदरत से दूर होते जा रहे हैं। यही कारण है कि जो चीजें नेचर ने हमें मुफ्त में दी हैं, हम उनका भी फायदा नहीं उठा पाते। गांव में तो प्राकृतिक चिकित्सा किसी-न-किसी रूप में अब भी मौजूद है। प्राकृतिक चिकित्सा कैसे हमें नेचर के करीब ले जाती है और इसके फायदे और सीमाएं क्या हैं आइयें इसके बारे में जानते हैं -

प्राकृतिक चिकित्सा को लेकर कुछ एक्सपर्ट की राय
कुछ एक्सपर्ट तो प्राकृतिक चिकित्सा शब्द को ही नहीं मानते। वह कहते हैं कि इसमें कोई दवा या इलाज नहीं होता, इसलिए पैथी कहना सही नहीं है। इसे नेचर क्योर कहना चाहिए।
•हर जिंदा प्राणी के शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता होती है, जिसे हम Healing Power within कहते हैं। जैसे अगर हड्डी टूटी है तो उसे आराम देने पर वह खुद ही जुड़ जाती है। ठीक इसी तरह शरीर के दूसरे अंगों को कुदरती तरीके से आराम देने से बीमारियां बिना दवाओं के ठीक हो जाती हैं।
•इस धरती पर लाखों जीवित प्राणी हैं, उनमें से आधुनिक इंसान ही एकमात्र जीव है जो बीमारियों को ठीक करने के लिए दवा का सहारा लेता है। बाकी जीव तो बिना दवा और बिना ऑपरेशन के ही ठीक हो जाते हैं। प्राचीन समय में इंसान भी आयुर्वेदिक दवाई का उपयोग बहुत कम करता था।
•जैसे सोने को जोड़ने के लिए सोना और लोहे को जोड़ने के लिए लोहा ही सबसे अच्छा और सही रहता है, उसी तरह इंसान के अंदर की बीमारियों को ठीक करने के लिए भी उन्हीं तत्वों ( मिट्टी, पानी, धूप, हवा और आकाश) का उपयोग सही है, जिनसे इंसान बना है।
•कुछ एक्सपर्ट्स दूध या दूध से बनी चीजों का सेवन करने से मना करते हैं। वे कहते हैं कि दूध का स्रोत पेड़-पौधे न होकर जानवर हैं। दूसरे, कोई भी दूसरा जानवर बड़े होकर दूध नहीं पीता और बचपन में किसी दूसरे जानवर का दूध नहीं पीता। तो इंसान क्यों पिए, बछड़े का दूध क्यों छीने/ फिर दमा-एग्जिमा जैसी बीमारियों की वजह दूध है। जब दूध से बेहतर विकल्प (दालें, धूप, हरी सब्जियां) हमारे पास मौजूद हैं तो हम दूध क्यों पिएं।
•प्राकृतिक चिकित्सा में 'रोग' शब्द नहीं है। स्वास्थ्य बढ़ता है या फिर स्वास्थ्य की कमी होती है।
•कोई ऐसी दवा नहीं है जो बीमारी पैदा न करे।
•उपवास से जब तक ताकत नहीं आए, तब तक उपवास करना चाहिए। दरअसल, उपवास से जब शरीर के अंदर हुई क्षति दूर हो जाती है तो कमजोरी अपने आप खत्म हो जाती है।

प्राकृतिक चिकित्सा में तीन तरह की रसोई
1. भगवान की रसोई: इस रसोई में सूरज धीरे-धीरे फलों, सब्जियों को पकाते हैं। वायुदेव लोरी गाकर बड़ा करते हैं। चांद इसमें औषधि और रस देता है जबकि धरती खनिज पदार्थ उपलब्ध कराती है। जो लोग इन्हें इसी रूप में खाते हैं, वे एक तरह से भगवान हो जाते हैं क्योंकि भगवान शक्तिमान हैं, वह रोगी नहीं होते और दवा कभी नहीं खाते।

2. इंसान की रसोई: अगर भगवान की रसोई से मिले हुए फल, सब्जी आदि को भूनकर खा लें तो यह भी चल सकता है। ये भी स्वस्थ रह सकते हैं।

3. शैतान की रसोई: इसमें डिब्बाबंद, पैकिट बंद, बोतल बंद, जंक फूड, फास्ट फूड, रेस्तरां का खाना, ढाबों का खाना आता है। ऐसा खाना खाकर बीमार पड़ना स्वाभाविक है।
यह 7 दिनों तक चलता है। इसमें दिन और रात के खाने का मेन्यू बदल जाता है।

सुबह में मौसमी का रस या संतरे का रस

नाश्ता: अमूमन शुद्धि डाइट जैसा ही

दोपहर का खाना: 2 से 3 चपाती (बाजरे या फिर अलग-अलग अन्न की रोटियां, सिर्फ गेहूं की नहीं खानी चाहिए।), एक कप दाल (100 से 150 एमएल), उबली हुई सब्जी (200 से 300 ग्राम)

शाम में: सब्जियों का सूप, ग्रीन टी आदि यानी लाइट फूड ही लेना है।

रात में: दोपहर के खाने जैसा भोजन। अगर भूख नहीं है तो एक सेब या 100 से 150 ग्राम कोई भी एक फल खा सकते हैं। खाली पेट नहीं सोना है।

अगर इस डाइट को फॉलो करने से ज्यादा फायदा नहीं हो रहा है तो इसे दोबारा चलाया जाता है। यह काफी हद तक मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है।

कच्चा खाना मुश्किल, पर जरूरी भी: यह सच है कि कच्चा फल या उबली हुई सब्जियां आदि खाना मुश्किल होता है क्योंकि कच्चे फलों को चबाने में ज्यादा मेहनत करना पड़ती है, तो उबली हुई सब्जियां ज्यादा टेस्टी नहीं होतीं। फिर भी ये हमारे लिए बहुत फायदेमंद हैं।

नोट: लोग इस तरह की डाइट घर पर भी फॉलो कर सकते हैं। शुरू में तीनों तरह की डाइट को एक-एक दिन तक करते हुए तीन दिन में पूरा कर सकते हैं। अगर घर पर तीनों दिन की डाइट फॉलो करना मुश्किल लगता है और किसी पार्टी में ज्यादा खा लिया तो दूसरे दिन शुद्धि डाइट को अपना लें।
सुबह में 1 या 2 गिलास पानी या फिर 1 गिलास नीबू पानी

इसके बाद नाश्ता: फल (1 से 2 सेब या 200 ग्राम पपीता)। एक बात याद रखें कि प्राकृतिक चिकित्सा में सलाद पर नीबू रस और नमक-मसाला मिलाकर खाने से मना किया जाता है क्योंकि इससे सलाद की फायदेमंद केमिस्ट्री बदल जाती है।

दोपहर का खाना: इसमें गाजर, चुकंदर, घीया, पालक, टमाटर आदि को खाने के लिए दिया जाता है। इन सभी को मिलाकर 400 से 500 ग्राम तक लिया जाता है।

शाम में: हरी सब्जियों के सूप, जिसमें पालक, टमाटर आदि हों। 100 से 150 एमएल (लगभग एक कटोरी) ले सकते हैं।

रात का खाना : दोपहर के खाने जैसा ही।•घड़ी की सुइयों के हिसाब से न खाएं। जब घंटी पेट में बजे, तब खाएं। यानी खाना भूख लगने पर ही खाएं और ज्यादा खाना नहीं, ज्यादा चबाना जरूरी है।
•एक वक्त पर एक ही फल खाएं, सेब 2, 3 खा सकते हैं, पर एक सेब, एक केला नहीं।
•फल एक वक्त के खाने की जगह खाएं। खाने से पहले, खाने के बाद या खाने के साथ

न खाएं।
•कच्ची सब्जियों का सलाद रोज एक बार खाना जरूरी है। यह भी खाने से पहले, खाने के बाद या खाने के साथ न खाएं। सलाद एक वक्त के खाने के तौर पर खाएं। सलाद में अलग-अलग कच्ची सब्जियां मिलाकर ले सकते हैं।
•सलाद में न तो नीबू डालें और न ही नमक। ये दोनों चीजें सलाद की सेहत बढ़ाने वाली केमिस्ट्री में दखल पैदा करती हैं। सलाद यानी सब्जियां ऐल्कलाइन होती हैं, नीबू और

नमक एसिड।
•सब्जियों के साथ फल न खाएं और न ही फल के साथ सब्जियां। कारण, फल एसिडिक होते हैं और सब्जियां ऐल्कलाइन।
•ऐल्कलाइन चीजें ज्यादा खाएं, एसिडिक चीजें कम। शरीर में एसिड ज्यादा हो तो यूरिक एसिड बढ़ता है, स्किन इंफेक्शन हेता है, और तमाम तरह की बीमारियां होती हैं।
•पका हुआ खाना दिन में एक ही बार खाएं। नाश्ता हल्का रखें। इसमें फल खाएं या सलाद। दिन की शुरुआत ऐल्कलाइन पेय से करें जैसे नारियल पानी, सफेद पेठे का रस आदि।
यह ऐसी डाइट होती है, जिससे शरीर को साफ किया जाता है।

मिनी कुंभ आज से शुरू, लाखों श्रद्धालु लगाएंगे आस्था की डुबकी - Suvichar News

कुम्भ मेला आज से शुरू

कुम्भ मेला: गढ़मुक्तेश्वर का इतिहास काफी ऐतिहासिक और पौराणिक (
Historical and mythological) है। पुरोहितों का कहना है कि इस स्थान पर भगवान शिव (Lord Shiva) के गणों को मुक्ति मिली थी। इन गणों को मुक्ति मिलने से इस स्थान का नाम गणमुक्तेश्वर (Ganmukteshwar) हुआ था, लेकिन इसके बाद बोलचाल में इसका नाम गढ़मुक्तेश्वर हो गया। 

स्नान से मिलती है मुक्ति


कार्तिक की बैकुंठ चतुर्दशी को गढ़ की गंगा में स्नान कर लोग यहां मृत परिवारवालों की मुक्ति और आत्मा की शांति के लिए गंगा में दीपदान करते हैं। दीपदान का दृश्य काफी मनोरम होता है।

मेले में आए मुस्लिम समुदाय के व्यापारी अजान के बाद गंगाजल से वजू कर रेतीले मैदान में खुदा पाक की रजा के लिए नमाज अता कर देश की खुशहाली और अमचैन की दुआ करते हैं। इस अनूठे संगम से गंगा का विशाल किनारा इन दिनों विभिन्न धार्मिक रंगों में डूबा हुआ है। हाजी शरीफ, गुड्डू, रज्जाक ने बताया कि गंगा खादर का यह मेला सचमुच सांप्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल है।

मेला स्थल पर महिलाओं और बच्चों की खरीदारी के लिए मीना बाजार भी अब सजने लगा है। सोमवार सुबह तक पूरा बाजार सजकर तैयार हो जाएगा।



गढ़मुक्तेश्वर में लगने वाले मेले के लिए गाजियाबाद और मेरठ रीजन की 200 रोडवेज बसों को गढ़ और ब्रजघाट के लिए लगाया है, जबकि बाकी बसों को रिजर्व में भी रखा गया है। गंगा मेला जाने वाले श्रद्धालुओं को कोई परेशानी नहीं होने दी जाएगी।

गढ़मुक्तेश्वर के खादर क्षेत्र में आज से कार्तिक मेला शुरू हो रहा है। मेरठ मंडल कमिश्नर अनीता सी. मेश्राम सोमवार को मेले का शुभारंभ करेंगी। आस्था के इस पर्व पर श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाएंगे। मेला सोमवार से 25 नवंबर तक चलेगा, जबकि मुख्य स्नान 23 नवंबर को है। इस महाभारतकालीन मेले को श्रद्घालु 'मिनी कुंभ' मेले का नाम भी देने लगे हैं। इसमें कई राज्यों से लाखों लोग स्नान करने आते हैं। इस वर्ष मेले में 35 से 40 लाख श्रद्घालुओं के आने का अनुमान है। कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा में स्नान करना पुरानी परंपरा है, लेकिन बदलते दौर में पुरानी परंपराएं खत्म होती जा रही हैं। इसी के चलते 'लक्खी' मेले के नाम से प्रसिद्ध कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाले मेले का स्वरूप बदलता जा रहा है। मेले में सबसे ज्यादा बिकने वाले गुड़ का स्थान अब चाऊमीन ने ले लिया है। पुराने जमाने में चिट्ठी के माध्यम से डेरा डालने के लिए स्थान तय किया करते थे, ताकि किसी को रुकने में कोई दिक्कत न हो। करीब 3 दशक पहले श्रद्धालु परंपरागत तरीके से बैल-गाड़ियों पर सवार होकर आया करते थे, जिससे आने-जाने में कई दिनों का समय लग जाया करता था, लेकिन आज के बदलते दौर में टेंपों, कार और बाइक जैसे वाहनों से श्रद्धालु आने लगे। श्रद्धालु यहां झूला, सर्कस, मौत का कुआं, काला जादू, टूरिंग टॉकीज आदि का आनंद लिया करते हैं। करीब 4 दशक पहले अधिकांश श्रद्धालु 2 सप्ताह तक यहीं पर ठहरा करते थे। विभिन्न जगहों से आने वाले लोग भाषा, पहनावा और रीति रिवाज से परिचित हुआ करते थे।

सुविचार फार यू


"भगवान शिव को शम्भू, शंकर, महादेव तथा नीलकंठ आदि अनेक नामों से सम्बोधित किया जाता है। उनके प्रत्येक नाम का अपना महत्व है। शिव की महिमा अपार है। शब्दों में उनकी व्याख्या करना असम्भव है। भगवान शिव की स्तुति करते समय हमारे ऋषियों ने लिखा है कि काले पत्थर की स्याह, समुद्र की दवात, कल्प द्रुम की लेखनी और पूरी पृथ्वी को कागज बना कर साक्षात माता सरस्वती उनकी महिमा लिखे, तब भी भगवान शिव की महिमा नहीं लिखी जा सकेगी।"

NBRI ने जारी की प्रदूषण कम करने वाले पौधों की सूची

घरों में लगाएं ये पौधे, कम होगा प्रदूषण का स्तर


ये पौधे प्रदूषण और लोगों के स्वास्थ्य के बीच एक बैरियर का काम करेंगे। पौधे लोगों को न सिर्फ धूल बल्कि हानिकारक गैसों से भी बचाएंगे।

-एसके बारिक, निदेशक, एनबीआरआई

हानिकारक कणों से होगी सुरक्षा


एनबीआरआई ने घरों के अंदर और बाहर लगने वाले इन एयर प्योरिफायर पौधों की सूची अपने ऐप पर अपलोड की है। ईएनवीआईएस एनबीआरआई में ग्रीन प्लानर में इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। इसकी मदद से लोग प्रदूषण के स्तर को कम करने वाले पौधे लगा सकते हैं। 'ग्रीन कवर' लोगों को हानिकारक कणों से आसानी से बचा सकता है।

'डिवाइडर पर भी लगाए जाएं ऐसे पौधे'


एनबीआरआई का कहना है कि ये पौधे सिर्फ घरों या बाहर मैदानों में ही नहीं बल्कि सड़कों के डिवाइडर पर भी लगने चाहिए ताकि हवा में फैले प्रदूषण को कम किया जा सके। ऐप में ऐसे पौधों की सूची भी है जो डिवाइडर पर लगाए जा सकते हैं।

बगीचे में लगे क्राइसेंथेमम का बदलता रंग इस बात का संकेत होता है कि आपके आसपास सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा बहुत ज्यादा है। वहीं, भारतीय ओलेंडर की पत्तियां फिल्टर के तौर पर काम करती हैं और बढ़े प्रदूषण से फेफड़ों को महफूज करती हैं।

सबसे अच्छे प्योरिफायर हैं ये पौधे


रबर प्लांट, बॉस्टन फ्रेन, स्पाइडर प्लांट, स्नेक प्लांट जैसे घरों के अंदर लगाए जा सकने वाले पौधे हवा को शुद्ध करने का काम करते हैं। वहीं, घरों के बाहर लगने वाले नीम, पीपल, अशोक और दूसरे कई
ऐसे पेड़ हैं जो प्रदूषण को कम करने के लिए सबसे बेहतर प्योरिफायर होते हैं।

बढ़ता प्रदूषण पूरे देश के लोगों की सेहत पर असर डाल रहा है। इससे बचने को लोग तरह-तरह के जतन भी कर रहे हैं। मास्क लगाने से लेकर खानपान तक पर खास ध्यान दिया जा रहा है। हालांकि, कुछ पौधे ऐसे हैं जिन्हें घरों में लगाकर प्रदूषण से स्वास्थ्य को सुरक्षित रखा जा सकता है। नैशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट (एनबीआरआई) ने ऐसे पौधों की सूची तैयार की है जो धूल को फिल्टर करते हैं और उसे अवशोषित कर उसके प्रभावों को कम कर देते हैं।

सीएसए यूनिवर्सिटी के उद्यान महाविद्यालय के असोसिएट प्रफेसर डॉ. विवेक त्रिपाठी के मुताबिक, घरों में बरगद, पाकड़ और पीपल की बोनसाई रखी जा सकती है। बड़े पेड़ों के मुकाबले बोनसाई से कम ऑक्सिजन का उत्सर्जन होता है, लेकिन घरों की जरूरत के लिहाज से ये पर्याप्त काम करते हैं। तुलसी से भी ऑक्सिजन मिलती है। इसके अलावा सिनगोनियम, डाइफेनबेकिया और एरेकापाम पौधों को घरों में लगाया जा सकता है। ब्रायोफाइलम, क्रोटन और फाइकस भी वातावरण साफ करने में उपयोगी हैं। धार्मिक मान्यताओं के तहत उत्तर-पूर्व दिशा में लोग नवग्रह वाटिका लगाएं तो इसमें शामिल पलाश, गूलर, दूब, पीपल, आक, समी, खैर, कांस और लटजीरा से भी प्रदूषण कम होता है।

96 year old woman received 98 out of 100 marks in Kerala Exam

केरल साक्षरता परीक्षा में 96 वर्षीय महिला ने 100 में से 98 अंक प्राप्त कियें

केरल साक्षरता परीक्षा में 96 वर्षीय महिला ने 100 में से 98 अंक प्राप्त कियें। मुख्यमंत्री पिनाराय विजयन उनको उपलब्धि प्रमाणपत्र दियें। 

सोच और इरादे अगर मजबूत हो तो उम्र मायने नहीं रखता यह करके दिखाया है केरला की एक महिला ने  जिनकी उम्र 96 वर्ष है। इनका नाम  कार्थ्यायनी अम्मा है और ये आलप्पुषा के मूल निवासी है। इन्होने केरल में आयोजित साक्षरता परीक्षा में उच्च अंक हासिल किए हैं।

ऐसा बताया जा रहा है कि वह अब अपनी आँखें अब कंप्यूटर सीखने पर सेट की हुई है। जब वह युवा थी तो इनको मौका नहीं मिला की पढ सके लेकिनन जब इन्होने बच्चों  को पढ़ते देखा तो इनको भी पढ़ने का शौक हो गया। 

Education Quotes for you


ऐसा बताया जा रहा है कि वह आलप्पुषा जिले के हरिपद के चेपड़ गांव के एक मूल निवासी, गैर-वंशानुगत गुरुवार को मुख्यमंत्री पिनाराय विजयन ने उनका "उपलब्धि प्रमाणपत्र" उन्हें दिया। जो उनकी उपलब्धि के लिए मान्यता के प्रतीक थे।

मिशन के निदेशक पी एस श्रीकला ने बताया कि कार्त्यायणी अम्मा ने लिखित में 40 में से 38 रन बनाए और गणित और पढ़ने में 30 में से प्रत्येक का पूरा अंक हाशिल की है। 

कार्त्यायणी अम्मा अब महिला साक्षरता कार्यक्रमों का हिस्सा बनने के इच्छुक हजारों लोगों के लिए एक आदर्श मॉडल बन चुकी है। 

Education Quotes for you

केरल के अधिकारी ने कहा कि हमें साक्षरता मिशन तहत राज्य को चार साल में पूरी तरह साक्षर करना है। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में लगभग 18.5 लाख अशिक्षित थे। अक्षरलाक्षम" राज्य में 100 प्रतिशत साक्षरता हासिल करने के लिए एलडीएफ सरकार के प्रमुख साक्षरता कार्यक्रमों में से एक है।

उन्होंने कहा कि परीक्षण के लिए उपस्थित कुल 43,330 उम्मीदवारों में से 42, 9 33 उम्मीदवारों ने राज्य भर में परीक्षा को मंजूरी दे दी है। 100 अंकों की पहल ने उम्मीदवारों के पढ़ने, लेखन और गणित कौशल का परीक्षण किया था। परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए, किसी को पढ़ने में 30 में से कम से कम 9 अंक हाशिल करना है, लिखित में 40 में से 12 और गणित में 30 में से 9 प्राप्त करना है।


जिन्होंने परीक्षा उत्तीर्ण की है, वे साक्षरता मिशन के चौथे मानक समकक्ष पाठ्यक्रम को नामांकित कर सकते हैं।  पलक्कड़ में जीतने वाले उम्मीदवारों की सबसे ज्यादा संख्या -10,866 है, इसके बाद तिरुवनंतपुरम-9 412 और मलप्पुरम -4065 हैं। पूरी तरह से निरक्षरता को खत्म करने के लिए, मिशन ने कई कार्यक्रमों को तैयार किया है, खासतौर पर हाशिए वाले समूहों जैसे आदिवासियों, मछुआरों और झोपड़पट्टियों के बीच।