Prakritik Chikitsa (Naturopathy )
योग को भी प्राकृतिक चिकित्सा का ही अंग माना गया है। योग की सहायता से मन शांत रहता है। प्राणायाम और योगासन के भी फायदे हैं। योग की मदद से शरीर के अंदर के अंग मजबूत होते हैं। वहीं एक्सरसाइज से शरीर का बाहरी हिस्सा मजबूत होता है। ध्यान करने से मानसिक शक्ति भी बढ़ती है।प्राकृतिक चिकित्सा सेंटर पर बीमारियों के अनुसार कई दूसरे तरीके भी हैं जिनसे इलाज किया जाता है। इनमें हाइड्रोथेरपी का खास रोल है। मसलन कटि स्नान, मेरुदंड स्नान, स्टीम बाथ, धूप स्नान, मड स्नान, एनिमा आदि। इसके अलावा मालिश भी एक तरीका है।
कुदरत के साथ रहकर भी हम कुदरत से दूर होते जा रहे हैं। यही कारण है कि जो चीजें नेचर ने हमें मुफ्त में दी हैं, हम उनका भी फायदा नहीं उठा पाते। गांव में तो प्राकृतिक चिकित्सा किसी-न-किसी रूप में अब भी मौजूद है। प्राकृतिक चिकित्सा कैसे हमें नेचर के करीब ले जाती है और इसके फायदे और सीमाएं क्या हैं आइयें इसके बारे में जानते हैं -
प्राकृतिक चिकित्सा को लेकर कुछ एक्सपर्ट की राय
कुछ एक्सपर्ट तो प्राकृतिक चिकित्सा शब्द को ही नहीं मानते। वह कहते हैं कि इसमें कोई दवा या इलाज नहीं होता, इसलिए पैथी कहना सही नहीं है। इसे नेचर क्योर कहना चाहिए।
•हर जिंदा प्राणी के शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता होती है, जिसे हम Healing Power within कहते हैं। जैसे अगर हड्डी टूटी है तो उसे आराम देने पर वह खुद ही जुड़ जाती है। ठीक इसी तरह शरीर के दूसरे अंगों को कुदरती तरीके से आराम देने से बीमारियां बिना दवाओं के ठीक हो जाती हैं।
•इस धरती पर लाखों जीवित प्राणी हैं, उनमें से आधुनिक इंसान ही एकमात्र जीव है जो बीमारियों को ठीक करने के लिए दवा का सहारा लेता है। बाकी जीव तो बिना दवा और बिना ऑपरेशन के ही ठीक हो जाते हैं। प्राचीन समय में इंसान भी आयुर्वेदिक दवाई का उपयोग बहुत कम करता था।
•जैसे सोने को जोड़ने के लिए सोना और लोहे को जोड़ने के लिए लोहा ही सबसे अच्छा और सही रहता है, उसी तरह इंसान के अंदर की बीमारियों को ठीक करने के लिए भी उन्हीं तत्वों ( मिट्टी, पानी, धूप, हवा और आकाश) का उपयोग सही है, जिनसे इंसान बना है।
•कुछ एक्सपर्ट्स दूध या दूध से बनी चीजों का सेवन करने से मना करते हैं। वे कहते हैं कि दूध का स्रोत पेड़-पौधे न होकर जानवर हैं। दूसरे, कोई भी दूसरा जानवर बड़े होकर दूध नहीं पीता और बचपन में किसी दूसरे जानवर का दूध नहीं पीता। तो इंसान क्यों पिए, बछड़े का दूध क्यों छीने/ फिर दमा-एग्जिमा जैसी बीमारियों की वजह दूध है। जब दूध से बेहतर विकल्प (दालें, धूप, हरी सब्जियां) हमारे पास मौजूद हैं तो हम दूध क्यों पिएं।
•प्राकृतिक चिकित्सा में 'रोग' शब्द नहीं है। स्वास्थ्य बढ़ता है या फिर स्वास्थ्य की कमी होती है।
•कोई ऐसी दवा नहीं है जो बीमारी पैदा न करे।
•उपवास से जब तक ताकत नहीं आए, तब तक उपवास करना चाहिए। दरअसल, उपवास से जब शरीर के अंदर हुई क्षति दूर हो जाती है तो कमजोरी अपने आप खत्म हो जाती है।
प्राकृतिक चिकित्सा में तीन तरह की रसोई
1. भगवान की रसोई: इस रसोई में सूरज धीरे-धीरे फलों, सब्जियों को पकाते हैं। वायुदेव लोरी गाकर बड़ा करते हैं। चांद इसमें औषधि और रस देता है जबकि धरती खनिज पदार्थ उपलब्ध कराती है। जो लोग इन्हें इसी रूप में खाते हैं, वे एक तरह से भगवान हो जाते हैं क्योंकि भगवान शक्तिमान हैं, वह रोगी नहीं होते और दवा कभी नहीं खाते।
2. इंसान की रसोई: अगर भगवान की रसोई से मिले हुए फल, सब्जी आदि को भूनकर खा लें तो यह भी चल सकता है। ये भी स्वस्थ रह सकते हैं।
3. शैतान की रसोई: इसमें डिब्बाबंद, पैकिट बंद, बोतल बंद, जंक फूड, फास्ट फूड, रेस्तरां का खाना, ढाबों का खाना आता है। ऐसा खाना खाकर बीमार पड़ना स्वाभाविक है।
यह 7 दिनों तक चलता है। इसमें दिन और रात के खाने का मेन्यू बदल जाता है।
सुबह में मौसमी का रस या संतरे का रस
नाश्ता: अमूमन शुद्धि डाइट जैसा ही
दोपहर का खाना: 2 से 3 चपाती (बाजरे या फिर अलग-अलग अन्न की रोटियां, सिर्फ गेहूं की नहीं खानी चाहिए।), एक कप दाल (100 से 150 एमएल), उबली हुई सब्जी (200 से 300 ग्राम)
शाम में: सब्जियों का सूप, ग्रीन टी आदि यानी लाइट फूड ही लेना है।
रात में: दोपहर के खाने जैसा भोजन। अगर भूख नहीं है तो एक सेब या 100 से 150 ग्राम कोई भी एक फल खा सकते हैं। खाली पेट नहीं सोना है।
अगर इस डाइट को फॉलो करने से ज्यादा फायदा नहीं हो रहा है तो इसे दोबारा चलाया जाता है। यह काफी हद तक मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है।
कच्चा खाना मुश्किल, पर जरूरी भी: यह सच है कि कच्चा फल या उबली हुई सब्जियां आदि खाना मुश्किल होता है क्योंकि कच्चे फलों को चबाने में ज्यादा मेहनत करना पड़ती है, तो उबली हुई सब्जियां ज्यादा टेस्टी नहीं होतीं। फिर भी ये हमारे लिए बहुत फायदेमंद हैं।
नोट: लोग इस तरह की डाइट घर पर भी फॉलो कर सकते हैं। शुरू में तीनों तरह की डाइट को एक-एक दिन तक करते हुए तीन दिन में पूरा कर सकते हैं। अगर घर पर तीनों दिन की डाइट फॉलो करना मुश्किल लगता है और किसी पार्टी में ज्यादा खा लिया तो दूसरे दिन शुद्धि डाइट को अपना लें।
सुबह में 1 या 2 गिलास पानी या फिर 1 गिलास नीबू पानी
इसके बाद नाश्ता: फल (1 से 2 सेब या 200 ग्राम पपीता)। एक बात याद रखें कि प्राकृतिक चिकित्सा में सलाद पर नीबू रस और नमक-मसाला मिलाकर खाने से मना किया जाता है क्योंकि इससे सलाद की फायदेमंद केमिस्ट्री बदल जाती है।
दोपहर का खाना: इसमें गाजर, चुकंदर, घीया, पालक, टमाटर आदि को खाने के लिए दिया जाता है। इन सभी को मिलाकर 400 से 500 ग्राम तक लिया जाता है।
शाम में: हरी सब्जियों के सूप, जिसमें पालक, टमाटर आदि हों। 100 से 150 एमएल (लगभग एक कटोरी) ले सकते हैं।
रात का खाना : दोपहर के खाने जैसा ही।•घड़ी की सुइयों के हिसाब से न खाएं। जब घंटी पेट में बजे, तब खाएं। यानी खाना भूख लगने पर ही खाएं और ज्यादा खाना नहीं, ज्यादा चबाना जरूरी है।
•एक वक्त पर एक ही फल खाएं, सेब 2, 3 खा सकते हैं, पर एक सेब, एक केला नहीं।
•फल एक वक्त के खाने की जगह खाएं। खाने से पहले, खाने के बाद या खाने के साथ
न खाएं।
•कच्ची सब्जियों का सलाद रोज एक बार खाना जरूरी है। यह भी खाने से पहले, खाने के बाद या खाने के साथ न खाएं। सलाद एक वक्त के खाने के तौर पर खाएं। सलाद में अलग-अलग कच्ची सब्जियां मिलाकर ले सकते हैं।
•सलाद में न तो नीबू डालें और न ही नमक। ये दोनों चीजें सलाद की सेहत बढ़ाने वाली केमिस्ट्री में दखल पैदा करती हैं। सलाद यानी सब्जियां ऐल्कलाइन होती हैं, नीबू और
नमक एसिड।
•सब्जियों के साथ फल न खाएं और न ही फल के साथ सब्जियां। कारण, फल एसिडिक होते हैं और सब्जियां ऐल्कलाइन।
•ऐल्कलाइन चीजें ज्यादा खाएं, एसिडिक चीजें कम। शरीर में एसिड ज्यादा हो तो यूरिक एसिड बढ़ता है, स्किन इंफेक्शन हेता है, और तमाम तरह की बीमारियां होती हैं।
•पका हुआ खाना दिन में एक ही बार खाएं। नाश्ता हल्का रखें। इसमें फल खाएं या सलाद। दिन की शुरुआत ऐल्कलाइन पेय से करें जैसे नारियल पानी, सफेद पेठे का रस आदि।
यह ऐसी डाइट होती है, जिससे शरीर को साफ किया जाता है।
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