Pulkit Thi, Praphoolit Thi, Main To Hansti Khelit Ek Phool ki Kali Thi
पुलकित थी, प्रफुल्ल थी, मैं तो हंसती खेलती एक फूल की कली थी।
अनजानी सी इस दुंनिया में, मुझे क्या पता चारो ओर हैवानो की मंडली थी।।
पुलकित थी, प्रफुल्ल थी, मैं तो हंसती खेलती एक फूल की कली थी।
धर्म की नगरी में, मुझे क्या पता अधर्म की बोली थी।।
पुलकित थी, प्रफुल्ल थी, मैं तो हंसती खेलती एक फूल की कली थी।
अपनो की इस बस्ती में, मुझे क्या पता किसी अपनो में ही हैवानियत थी।।
पुलकित थी, प्रफुल्ल थी, मैं तो हंसती खेलती एक फूल की कली थी।
कर्ज की मजबूरी में, मुझे क्या पता ब्याज की वसूली थी।।
पुलकित थी, प्रफुल्ल थी, मैं तो हंसती खेलती एक फूल की कली थी।
न्याय की कानूनी पेच में, मुझे क्या पता अन्याय की टोली थी।।
✍️ Vinay Singh, Suvichar4u.com
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