गुरू नानक देव जी: हिंदी सुविचार/अनमोल वचन,सच्ची कहानी
guru के ऊपर सुविचार
सतगुरु सच्चे पातशाह ने तो तारना था। मर्दाना जी से कहा चल मर्दन्या आज इसी का नम्बर लगाते हैं। आज इसको तारने चलते हैं। सच्चे पातशाह सेठ के घर आए। यहां पंगते लगी हैं। नगर के वासी लंगर भोजन कर रहे है। 100 ब्राह्मण भी एक तरफ बैठे भोजन कर रहे हैं। सच्चे पातशाह भी जाकर बैठ गए। सेठ ने कहा आ जाओ आप भी यहां बैठ जाओ। नानक सच्चे पातशाह ने कहा पहले सबको खिला दो। सेठ कहने लगा आप तो बड़े संतोषी हो, सबर वाले हो। नहीं तो यहां लंगर बटना शुरू होता है तो लोग एक दूसरे पर टूट पड़ते हैं।
सच्चे पातशाह ने पूछा सेठ ये लंगर किस लिए लगाया है। सेठ कहने लगा महाराज जी ये अपने पिता पितरों की कल्याण के लिए लगाया है। आज मेरे पिता जी की बरसी है ना। सच्चे पातशाह ने पूछा तो पिता जी का कल्याण हो गया? सेठ ने कहा हां महाराज, 100 ब्राह्मण खा चले गए। सुबह से पता नहीं कितने लोग लंगर करके चले और अभी भी लंगर चल रहा है। सबने यही कहा तेरे पिता का कल्याण हो गया।
गुरू नानक जी कहने लगे अभी तेरे पिता का कल्याण नहीं हुआ है। वो तो बाघ की योनि में जंगल की झाड़ी में 3 दिनों भूखा बैठा है। ये बात सुन के सेठ हैरान हो गया। सच्चे पातशाह ने कहा ये जो तूने मेरे लिए थाली लगाई है न इसे ले जा। वहां नदी के परले तरफ झाड़ में तेरा पिता बैठा है बाघ बनके। मेरी थाली ले जा। हमने अपनी नदर कर दी है। इस थाल में अब ये प्रसाद बन गया है।
सतगुरु के पास दो तरीके से भोग लगता है। एक प्रसाद हम जो पदार्थ खाते हैं। एक गुरू लंगर चख लेवे या गुरू की नदर पर जावे। सेठ को विश्वास नहीं हुआ इतने सालो से श्राद्ध कर रहे हैं किसी ने कुछ नहीं कहा। इन्होंने तो नई बात कह दी। पर सच्चे पातशाह की वाणी गुरू नानक जी की नदर देख कर सेठ कांप गया। कहने लगा महाराज वो तो बाघ है। कहीं मेरे पे ना आ जाए। गुरू नानक जी ने कहा जा नहीं आयेगा तेरे पे। तू मेरा दर्शन करके जा रहा है। वो जब तेरा दर्शन करेगा निहाल हो जाएगा। वो तेरा पिता है ये उसे ज्ञान हो जाएगा। जा दुनीचंद जब तक तू लौट के नहीं आयेगा, हम तेरे इंतज़ार में यही बैठे रहेंगे। सेठ चल पड़ा कभी दो कदम आगे कभी दो कदम पीछे। मन कभी मानता, कभी नहीं मानता पर नाव में बैठ के नदी के परले तरफ गया जहा गुरू नानक जी ने कहा था। झाड़ियों के पीछे वो तेरा बाप है तू उसका पुत्र है। जब झाड़ियों के पीछे गया तो वहा बाघ मिला और जब झाड़ खड़कने की आवाज हुई तो बाघ ने मुंह ऊपर किया दुनीचंद के ऊपर तो सेठ को लगा मेरा बाप भी मेरे ऊपर ऐसे ही देखता था। उसकी आंख भी ऐसी लगती थी। जाकर प्रसाद का थाल आगे रखा और कहा बापू भूख है ना तेरे लई गुरू नानक जी ने प्रसाद भेजा है और जैसे ही उसके हाथ से प्रसाद खाया वो बाघ का रूप त्याग कर जीवात्मा रूप धारण कर लिया और कहने लगा दुनीचंद जल्दी जा तेरे घर परमात्मा रूप नारायण आए हैं। उनकी कृपा से मेरा कल्याण हुआ। तु जा उनके चरण पकड़ कही वो चले ना जाए।
पता है मैं इस योनि में क्यू आया? मेरा अंत समा आया तो पड़ोस में मांस बन रहा था। मांस की बू मेरे पास आई। मेरा अंत समा मुझे लगा थोड़ा मुझे भी मिल जाय तो मैं भी खा लु। तब निरंकार ने मुझे बाघ की योनि दी। अब जितना मर्जी उतना मांस खा। क्योंकि अंत समा जैसा मन में ख्याल आ जाए, नारायण उसी तरफ भेज देता है। अंत समा नारायण याद आ जाए तो नारायण खुद लेने आ जाए।
अंत काल नारायण सिमरे ऐसी चिंता में जो मरे भक्त त्रिलोचन जे नर मुक्त पीताम्बर मंगे हृदय बसे
सेठ जब घर आया तो Shri Guru Nanak Dev Ji के चरणों में गिर पड़ा। कहने लगा Satguru आपने सच कहा आज मेरे पिता का कल्याण हुआ है।
प्यार से बोलो वाहे Guru। अब किछ कृपा किजे वाहे गुरू अब किछ कृपा कीजे। वाहे गुरू वाहे गुरू वाहे गुरू जी
गुरू नानक देव जी हिंदी सुविचार
1. ईश्वर एक ही है और उसे पाने का तरीका भी एक ही है। वही सत्य है। वही Rachanatmak है और वही अनश्वर है। जिसमे कोई डर नहीं और जो Dvesh भाव से पराया है। गुरु की कृपा द्वारा ही इसे प्राप्त किया जा सकता है।
2. जिस व्यक्ति को अपने आप पर Vishwas नहीं है वो कभी भी ईश्वर पर पूर्णरूप से Vishwas नहीं कर सकता।
3. Ahankar द्वारा ही मानवता का अंत होता है। अहंकार कभी नहीं करना चाहियें बल्कि Hriday में सेवा भाव रख जीवन व्यतीत करना चाहियें।
4. मैं न तो बच्चा हूँ, न जवान, न प्राचीन; न ही मैं किसी जाति का हूं।
5. धन-बैभव से युक्त बड़े-बड़े राज्यों के Raja-Maharaja की तुलना भी उस Chinti से नहीं की जा सकती है जिसमें भगवान का प्रेम भरा हो.
6. ईश्वर की सीमायें और हदें पूरे मानव जाती की सोच से परे हैं।
7. कभी किसी का हक़ नहीं छीनना चाहियें। जो व्यक्ति ऐसा करता है उसे कही भी Samman नहीं मिलता।
9. जब आप किसी की सहायता करते हैं तो भगवान आपकी मदत करता है। हमेशा दूसरों की सहायता के लिए आगे रहो।
10. मेहनत और ईमानदारी से काम करके उसमे से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहियें।
11. कर्म भूमि पर फल के लिए कर्म सबको करना पड़ता है। ईश्वर तो लक़ीरें देते हैं पर रंग हमको भरना पड़ता है।
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