Mirza Ghalib Shayari
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Mirza Ghalib Hindi Shayari
‘Galib’
बुरा न मान जो वाइ’ज़ Bura
Kahe,
ऐसा भी koi है
कि सब Achha कहें
जिसे....
रगों में Daudate
फिरने के हम नहीं Kaail,
जब Aankh ही
से न tapka तो
फिर Lahhu क्या है !!
Jo Kuch Hai महव-ए-शोख़ी-ए-अबरू-ए-यार है,
Aankho को
रख के ताक़ पे Dekha
करे कोई
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर Khapata हूँ
मैं Kaha और
ये wabal कहाँ !!
इन Aabalo से
पाँव के Ghabra गया
था मैं,
जी Khush हुआ
है राह को Pur-Khar
देख कर !!
Muhabbat
में उनकी अना का Pass
रखते हैं,
हम Jankar
अक्सर उन्हें Naraaj
रखते हैं !!
चाहें Khak
में मिला भी दे किसी Yaad सा
भुला भी दे,
Mahkenge हसरतों
के नक़्श* हो हो कर Payemaal
भी
!!
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के Kaabil नहीं रहा
जिस Dil पे
नाज़ था मुझे वो Dil
नहीं रहा
जी Dhoondhata है फिर वही फ़ुर्सत कि Rat-Din,
बैठे रहें Tasavoor-A-Jana
किए हुए !!
फिर Dekhiye
अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार,
रख दे कोई Paimana-A-Sahaba
मिरे आगे !!
क़ासिद के Aate-Aate
ख़त इक और Likh
रखूँ,
मैं Janta
हूँ जो वो Likhenge
जवाब में !!
है एक Tir जिस
में दोनों Chhide पड़े
हैं
वो Din गए
कि अपना दिल से Jigar
जुदा था
Nasihat के
कुतुब-ख़ाने* यूँ तो Duniya
में भरे हैं,
Thokare खा
के ही अक्सर Bande को
अक़्ल आई है !!
ये फ़ित्ना Aadami की
ख़ाना-वीरानी को Kya कम
है
हुए तुम Dost
जिस के दुश्मन उस का Aasma
क्यूँ हो
कोई मेरे Dil से
पूछे तिरे Tire Tir-A-Nim-Kash को
ये Khalish
कहाँ से होती जो Jigar के
पार होता
ता फिर न Intiejar
में नींद आए Umra
Bhar,
आने का Ahad कर
गए आए जो Khwab Me
में !! –
क़ैद-ए-हयात ओ Band-A
Gam अस्ल में दोनों एक हैं
Maut से
पहले आदमी ग़म से Najat
पाए क्यूँ
Ham
महव-ए-चश्म-ए-रंगीं-ए-जवाब* हुए हैं Jabse,
Sauk-A-Didaar
हुआ जाता है हर Sawal का
रंग !!
जिस Jakhm की
हो सकती हो Tadbir
रफ़ू की,
Likh
दीजियो या रब उसे Kismat
में अदू की !!
हर Ranj
में ख़ुशी की थी Ummid
बरक़रार,
तुम Mudkura
दिए मेरे Jamane बन
गये !!
न सुनो गर Bura
कहे कोई,
न कहो गर Bura
करे कोई !!
रोक लो गर Galat
चले कोई,
बख़्श दो गर Khata
करे कोई !!
तेरे Waade पर
जिये हम
तो यह जान,Jhut
जाना
कि Khushi से
मर न जाते
अगर Aitvaar
होता ..
गा़लिब
तुम अपने Shikwe की
बातें
न Khod-Khod के
पूछो
हज़र करो मिरे Dil से
कि उस में Aag
दबी है..
इस Saadgi पे कौन न Mar जाए ऐ ख़ुदा
ladate
हैं और हाथ में Talwaar भी
नहीं
Gaalib
अपनी Gali
में मुझ को
न कर Dafan
बाद-ए-क़त्ल
मेरे पते से khalk को
क्यूँ तेरा Ghar
मिले
Gaalib
आह को Chahiye इक
उम्र Asar होते तक
कौन Jita है
तिरी ज़ुल्फ़ के Sar
होते तक
कुछ lamhe
हमने ख़र्च किए थे Mile
नही,
सारा Hisab
जोड़ के Sirhane रख
लिया !!
भीगी हुई सी Rat
में जब Yaad जल
उठी,
Badal सा
इक निचोड़ के Sirhane रख
लिया !!
अब अगले Mausamo
में यही Kaam
आएगा,
कुछ Roj
दर्द ओढ़ के Sirhaane रख
लिया !!
वो Raaste
जिन पे कोई Silwat ना
पड़ सकी,
उन Raasto को
मोड़ के Sirhane रख
लिया !!
Afsaana
आधा छोड़ के Sirhaane रख
लिया,
Khwahish का
वर्क़ मोड़ के Sirhane रख
लिया !!
Tamij-a-jisti-o-neki
में लाख बातें हैं,
ब-अक्स-ए-आइना यक-फ़र्द-ए-सादा रखते हैं !!
ज़रा कर ज़ोर Sine
में कि Tire-Pur-Sitam
निकले,
जो वो निकले तो Dil
निकले, जो दिल निकले तो Dam
निकले !!
रंज से Khugar हुआ इंसाँ तो मिट जाता है Ranj,
Muskile
मुझ पर पड़ीं इतनी कि Aansa हो
गईं !!
हम हैं Mustaak और
वो बे-ज़ार
या इलाही ये Maajra
क्या है !!
जान तुम पर Nisar
करता हूँ,
मैं नहीं जानता
Dua क्या है !!
पड़िए गर Bimar तो कोई न हो Timardaar,
और अगर Mar
जाइए तो Nauha-Khwa
कोई न हो
हसद से Dil अगर अफ़्सुर्दा है Garm-A-Tamaasa हो
कि चश्म-ए-तंग शायद Kasarat-A-Najjama से
वा हो
हम तो जाने कब से हैं Aawara-A-Julmat मगर,
तुम Thahar
जाओ तो पल भर में Gujar
जाएगी रात !!
है उफ़ुक़ से एक Sang-A-Aaftab आने की देर,
टूट कर Maanid-A-Aaina
बिखर जाएगी रात !!/
दैर नहीं Haram नहीं दर नहीं Aasta नहीं
बैठे हैं Rahgujar पे
हम ग़ैर हमें Uthaye
क्यूँ
हम हैं Mustak और वो बे-ज़ार
या इलाही ये Majra
क्या है
Dil-A-Naada तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की Dawa
क्या है
हो उसका Jikra तो बारिश सी Dil में होती है
वो Yaad
आये तो आती है Dafatan
ख़ुशबू
इक sauk बड़ाई का अगर हद से gujar जाए
फिर `mai’के
सिवा कुछ भी दिखाई नहीं देता
इक क़ैद है Aajadi-A-Afkaar भी गोया,
इक Daam जो
उड़ने से Rihaai
नहीं देता
इक Aah-A-Khata गिर्या-ब-लब सुब्ह-ए-अज़ल से,
इक Dar है
जो तौबा को Rasai नहीं
देता
इक क़ुर्ब जो क़ुर्बत को रसाई नहीं देता,
इक फ़ासला अहसास-ए-जुदाई नहीं देता
इक Kurb जो
क़ुर्बत को Rasai नहीं
देता,
इक फ़ासला Ehsaas-A-Judai
नहीं देता
Aaj फिर पहली मुलाक़ात से Aagaj करूँ,
आज फिर Dur से
ही देख के Aau उस
को !!
Jindagi में तो सभी Pyar किया करते हैं,
मैं तो Mar कर
भी मेरी जान तुझे Chahunga !!
तू Mila है तो ये Ehsaas हुआ है मुझको,
ये मेरी उम्र Muhabbat के
लिए थोड़ी है ….
Khaar भी ज़ीस्त-ए-गुलिस्ताँ हैं,
फूल ही Haasil-A-Bahar
नहीं !!
वो जो काँटों का Raajdar नहीं,
Fasl-A-Gul का भी Paas-Daar
नहीं !!
मैं Chaman
में क्या गया गोया Dabista
खुल गया,
Bulbule
सुन कर मिरे नाले Gajal-Khwaa हो
गईं !! –
हम जो Sabka दिल रखते हैं
सुनो, हम भी एक Dil
रखते हैं
शहरे Wafa में धूप का Saathi नहीं कोई
Suraj
सरों पर आया तो Saaye भी
घट गए
Ghalib Ke Sher ग़ालिब के शेर
उस पे आती है Mohabbat
ऐसे
Jhut पे
जैसे Yakin
आता है
खुद को Manwane का मुझको भी Hoonar आता है
मैं वह Katra
हूं समंदर मेरे Ghar
आता है
फिर Aablo के ज़ख़्म चलो Taaja ही कर लें,
Koi
रहने ना पाए बाब जुदा Rudaad-A-Safar से
!!
Ejaaj तेरे इश्क़ का ये Nahi तो और क्या है,
Udane का
ख़्वाब देख लिया इक Tute हुए
पर से !!
साज़-ए-दिल को Gudgudaaya इश्क़ ने
मौत को ले कर Jawaani
आ गई
मैं तो इस Taajagi-A-Husn पे
सदक़े,
न Jafaa आती
है जिसको न Wafaa
आती है !!
यादे-जानाँ भी अजब Ruh-Fajja आती है,
साँस लेता हूँ तो Jannat की
हवा आती है !!
है और तो koi सबब
उसकी Muhabbat का
नहीं,
Baat
इतनी है के वो मुझसे Jafaa
करता है !!
हम भी Dushman तो नहीं हैं अपने
ग़ैर को तुझ से Mohabbat ही
सही
कुछ तो Tanhaai की रातों में Sahara होता,
Tum न
होते न सही Jikra तुम्हारा
होता !!
Gujar रहा हूँ यहाँ से भी Gujar जाउँगा,
मैं Wakth
हूँ कहीं ठहरा तो Mar जाउँगा
!!
Gujare हुए लम्हों को मैं इक Baar तो जी लूँ,
कुछ Khwaab
तेरी याद Dilane के
लिए हैं !!
क़र्ज़ की Pite थे मय लेकिन Samjhate थे कि हाँ
रंग लावेगी हमारी Faaka-Masti एक
दिन
ईमाँ मुझे Roke है जो Khiche है मुझे कुफ़्र
kaaba मिरे पीछे है Kalisa मिरे आगे
है आदमी बजा-ए-ख़ुद इक Mahasar-A-Khayal ,
हम Anjuman समझते हैं Khalwat ही क्यूँ न हो
तिरे Waade पर जिए हम तो ये Jaan झूट जाना,
कि Khushi से मर न जाते Agar ए’तिबार होता !!
Be-Niyaaji हद से गुज़री Banda-Parwar कब तलक
हम Kahenge हाल-ए-दिल और
आप Farmayenge क्या
तुम Salamat रहो हज़ार बरस,
हर Baras के हों दिन Pachas हज़ार !!
Maut फिर जीस्त न बन जाये यह डर है’Galib’,
वह मेरी Kabra पर
अंगुश्त-बदंदाँ होंगे !!
मत Puchh कि क्या Haal है मेरा तिरे पीछे,
तू Dekh कि क्या Rang है तेरा मिरे आगे !!
तुम न Aaoge तो मरने की हैं सौ Tadbire,
Maut कुछ तुम तो नहीं
हो कि Bula भी न सकूँ !!
कुछ Khatakta था मिरे Sine में लेकिन आख़िर,
जिस को Dil कहते थे सो तीर
का Paika निकला !!-
Achha है सर-अंगुश्त-ए-हिनाई का Tassavoor,
दिल में Najar आती तो है इक Bund लहू की !!
की मेरे Katla के बाद उस ने Jafaa से तौबा,
हाए उस Jud-Fashima का
पशीमाँ होना !! –
आता है मेरे Katla को पर Josh-A Ishq से
Marta हूँ उस के हाथ
में Talwar देख कर
करने गये थे उनसे Tagaphul का हम Gila,
की एक ही Nigaah कि
हम Khak हो गये !! –
ये न थी हमारी Kismat कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और Jite रहते यही Intejaar होता !! –
ता करे न Gammaji कर लिया है Dushman को
दोस्त की Shikayat
में हम ने Ham-Jaba अपना
‘ग़ालिब’ Nadim-A-Dost से आती है बू-ए-दोस्त
मश्ग़ूल-ए-हक़ हूँ Bandage-A-Bu-Tarab
में
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है Duniya मिरे आगे
होता है Tamaasa
शब् ओ Roj मेरे आगे
हज़ारों Khwahishe ऐसी कि हर Khwahish पे दम निकले
आह को Chahiye इक
उम्र Asar होते तक
हैं और भी Duniya में Sukhan-Var बहुत अच्छे
कहते हैं कि ‘galib’ का है Andaaj-A-Bayaa और
दर्द Minnat-Kash-A-Dawa न हुआ
मैं न Achha हुआ Bura न हुआ
फिर मुझे Dida-A-Tar याद आया
दिल Jigar तश्ना ए Fariyad आया
दम लिया था ना Kayamat ने
हनोज़
फिर तेरा Wakte-Safar
याद आया
Jaan दी दी हुई Usi की थी
Hak तो
ये है कि हक़ Adaa न
हुआ
छोड़ूँगा मैं न उस But-A-Kafir का पूजना
छोड़े
न Khalk गो
मुझे kafar
कहे बग़ैर
क्या वो Namrud की ख़ुदाई थी
जो Bandagi में मिरा Bhala न हुआ
मुज़्दा ऐ Jauk-A-Asiri कि नज़र आता है
दाम-ए-ख़ाली Kafas-A-Murg-A-Girafatar के
पास
Isharat-A-Dariya है दरिया में Fana हो जाना
दर्द का हद से Gujarna है
दवा हो जाना
Gaalib
‘ग़ालिब’ Wajifa-Khwar हो दो Shaah को दुआ
वो Din गए कि कहते थे Naukar नहीं हूँ मैं
Gaalib
ग़म-ए-हस्ती का ‘Asad’ किस से हो जुज़ मर्ग Ilaaj
शम्अ हर rang में जलती है Sahar होते तक
Gaalib
जाँ Dar-Hawa-A-Yak-Nigaah-A-Garm है ‘असद’
परवाना है वकील तिरे Daah-Khwaah का
ग़ालिब
मैं Bulata तो हूँ उस को Magar ऐ जज़्बा-ए-दिल
उस पे Ban जाए कुछ Aisi कि बिन आए न
ख़ार Khar-A-Alam-A-Hasarat-A-Didaar तो है
शौक़ Gul-Chin-A-Gulistaan-A-Tasalli न
सही
Gaalib
न हुई Gar मिरे मरने से Tasalli न सही
Imtihaa और भी Baaki हो तो ये भी न सही
Ibna-E-Maryam हुआ करे कोई
मेरे दुख की Dawa करे कोई
Gaalib
Ohade से मद्ह-ए-नाज़ के Bahar न आ सका
गर इक Adaa हो तो उसे अपनी
Kajaa कहूँ
Gaalib
Ishq मुझ को नहीं Wahsat ही सही
मेरी wahsat तिरी Shohrat ही सही
Gaalib
Dil-E-Naada तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस Dard की दवा क्या है
Gaalib
न था कुछ तो Khuda था कुछ न होता तो Khuda होता
Duboya मुझ को होने ने
न होता Mai तो क्या होता
Gaalib
नुक्ता-चीं है Gam-E-Dil उस को Sunaye न बने
क्या बने Baat जहाँ बात Bataaye न बने
आह को Chahiye इक उम्र Asar होते तक
कौन Jeeta है तिरी Julf के सर होते तक
Gaalib
आशिक़ी Sabra तलब और Tamanaa बेताब
Dil का क्या रँग
करूँ Khun-E-Jigar होने तक
हो चुकीं ‘gaalb’ बलाएँ सब तमाम
एक Marg-E-Naa-Gahani और
है
Gaalb
इश्क़ पर Jor नहीं है ये वो Aatish ‘ग़ालिब’
कि Lagaaye न लगे और Bujhaye न बने
Gaalib
Inkaar की सी लज़्ज़त Ikraar में कहाँ,
होता है Ishq ग़ालिब Unki नहीं नहीं से !!
कहूँ किस से Mai कि क्या है Shab-E-Gam बुरी बला है
मुझे क्या Bura था मरना Agar एक बार होता
Gaalib
देखो तो Dil फ़रेबि-ए-अंदाज़-ए-नक़्श-ए-पा,
Mauj-E-Khram-E-Yaar भी
क्या गुल Katar गई !!
देखिए Laati है उस शोख़ की Nakhawat क्या रंग
उस की हर Baat पे हम Naam-E-Khuda कहते हैं
Gaalib
तू ने Kasam मय-कशी की Khai है ‘ग़ालिब’
तेरी Kasam का कुछ Etiwar नही है..!
-Mirja Gaalib
Mohabbat में नही फर्क Jeene और मरने का
उसी को Dekhakar
जीते है जिस ‘Kaafir’ पे दम
निकले..!
-Mirja Gaalib
मगर Likhawaye कोई उस को Khat
तो हम से Likhwaye
हुई Subah और
घरसे Kaan पर रख कर Kalam निकले..
-Mirja Gaalib
मरते है Aarju में मरने की
Maut आती है पर नही Aati,
काबा किस Muh से जाओगे ‘Gaalib’
शर्म तुमको Magar नही आती ।
-Mirja Gaalib
कहाँ Maykhane का दरवाज़ा ‘gaalib’ और कहाँ Waij
पर इतना Jante है कल वो Jata था के हम निकले..
-Mirja Gaalib
बना कर Fakiro का हम भेस Gaalib
Tamasha-E-Ahal-E-Karam
देखते है..
तेरे Waade पर जिये ham, तो यह Jaan झूठ जाना,
कि Khushi से मर न जाते, अगर
Etibaar होता ।
Gaalib ने यह कह कर Tod दी तस्बीह.
Ginkar क्यों नाम लू
उसका जो Behisaab देता है।
हुई मुद्दत कि ‘gaalib’मर गया पर Yaad आता है,
वो हर इक Baat पर कहना कि यूँ
Hota तो क्या होता
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