वट सावित्री पूजा क्या है?
वट सावित्री पूजा को भारत के कई क्षेत्रों में Vat Purnima (वट पूर्णिमा) या वट सावित्री पर्व भी कहा जाता है। यह पर्व भारत के मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक आदि राज्यों में मनाया जाता है। VAT Savitri Puja को पत्नियां करती है और भगवान से कामना करती है कि उनके पति की आयु लंबी हो, घर में धन और समृद्धि का वास हो तथा घर में सुख-शांति बनी रहे।
What is Vat Savitri Puja?
Vat Savitri Puja is also known as Vat Purnima or Vat Savitri Parv in many regions of India. This festival is celebrated in the states of Madhya Pradesh, Gujarat, Bihar, Punjab, Haryana, Uttar Pradesh and Karnataka etc. Wives perform VAT Savitri Puja and pray to God that their husbands live long, wealth and prosperity reside in the house and happiness and peace remain in the house.
धन्य वो देवी जो पति सुख के लिए व्रत पावे,
धन्य वो पति जो देवी रूप पत्नी पावे,
धन्य वो स्वरुप जो मनुष्यता का दीप जलावे.
वज सावित्री की हार्दिक शुभकामनाएं।
वट सावित्री व्रत कथा एक ऐसा व्रत है जिसमें हिंदू धर्म को मानने वाली सभी महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और संतान की प्राप्ति की कामना करती हैं। VAT Savitri Puja व्रत उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय है और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में भी इसे मनाया जाता है। Vat Purnima व्रत का पर्व गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा सहित दक्षिण भारत में विशेष रूप से मनाया जाता है। यह पर्व उसी तरह मनाया जाता है जैसे उत्तर भारत में वट सावित्री व्रत का पर्व मनाया जाता है। वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को रखा जाता है, वहीं वट पूर्णिमा व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने वाली विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य का फल मिलता है और घर में सुख-शांति और पति की लंबी आयु का वास होता है।
पौराणिक ग्रंथों में इस व्रत की तिथि के संबंध में अलग-अलग मत हैं। दरअसल यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या और उसी माह की पूर्णिमा के दिन किया जाता है। निर्चनामृत के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को रखा जाता है, जबकि स्कंद पुराण और भविष्योत्तर पुराण ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाने का निर्देश है।
वट सावित्री व्रत कथा
पौराणिक, प्रामाणिक और प्रचलित वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार सावित्री का पति अल्पायु था। उसी समय देव ऋषि नारद ने आकर सावित्री से कहा कि तुम्हारा पति अल्पायु है। तुम दूसरा वर मांगो। लेकिन सावित्री ने कहा - मैं एक हिंदू महिला हूं, मैं केवल एक बार अपना पति चुनती हूं। उसी समय सत्यवान के सिर में बहुत पीड़ा होने लगी।
सावित्री ने बरगद के पेड़ के नीचे अपने पति का सिर गोद में रखकर उन्हें लिटा दिया। उसी समय सावित्री ने देखा कि यमराज बहुत से यमदूतों को लेकर पहुंचे हैं। सत्यवान की आत्मा को दक्षिण की ओर ले जाने लगे। यह देखकर सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे चलने लगी।
उसे आते देख यमराज ने कहा- हे पतिव्रता स्त्री! पत्नी अपने पति को धरती तक ही सहारा देती है। अब तू लौट जा। इस पर सावित्री ने कहा- मेरे पति जहां रहेंगे, वहीं मुझे उनके साथ रहना है। यह मेरी पत्नी का धर्म है। सावित्री के मुख से यह उत्तर सुनकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री से वर मांगने को कहा और कहा- मैं तुम्हें तीन वर दूंगा। बताओ तुम कौन से तीन वर लोगे?
तब सावित्री ने अपने सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य मांगा और अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की माता बनने का वरदान मांगा। सावित्री के ये तीन वरदान सुनकर यमराज ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा- तथास्तु! जो तुमने कहा है वही होगा। सावित्री फिर उसी बरगद के पेड़ पर लौट आई। जहां सत्यवान मृत पड़ा था। सत्यवान के शव का फिर संचार हुआ। इस प्रकार सावित्री ने VAT Savitri Puja के प्रभाव से न केवल अपने पति को जीवित कर दिया, बल्कि अपनी सास और ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करके खोया हुआ राज्य भी अपने ससुर को लौटा दिया।
तभी से वट सावित्री अमावस्या और वट सावित्री पूर्णिमा पर बरगद के पेड़ की पूजा करने का विधान है। इस व्रत को करने से सौभाग्यवती स्त्रियों की मनोकामना पूर्ण होती है और उनका सौभाग्य अखंड रहता है। हम आशा करते हैं कि वट सावित्री व्रत कथा आपको अवश्य ही पसंद आयी होगी।
VAT Savitri Puja के कथा का सार
वट सावित्री पूजा के कथा का सार यह है कि श्रद्धापूर्वक समर्पित स्त्रियां अपने पति को सभी दुखों और कष्टों से दूर रखने में सक्षम होती हैं। जिस प्रकार सावित्री ने पतिव्रता धर्म की शक्ति से ही अपने पति सत्यवान को यमराज के बंधन से मुक्त कराया था। इतना ही नहीं, उसने अपना खोया राज्य और अंधी सास-ससुर की आंखों की रोशनी भी वापस पा ली। इसी प्रकार स्त्रियों को भी पति को ही अपना गुरु और सब कुछ मानना चाहिए।
वट सावित्री पूजा विधि
वट सावित्री पूजा में वट यानी बरगद के पेड़ का पूजा किया जाता है तथा इसके साथ सत्यवान-सावित्री और यमराज की भी पूजा की जाती है।
मान्यता है कि वट के पेड़ में तीनों देवताओं ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है इसलिए वट की पूजा के बिना यह व्रत संभव नहीं हो सकता है।
- पूजा करने के लिए सबसे पहले बरगद के पेड़ के सामने बैठ जाएं। फिर उसकी पूजा करें। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होगी।
- वट सावित्री पूजा के दिन विवाहित महिलाओं को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए।
- इसके बाद रेत से भरी बांस की टोकरी लें और उसमें ब्रह्मदेव की मूर्ति के साथ सावित्री की मूर्ति को स्थापित करें।
- इसी तरह दूसरी टोकरी में सत्यवान और सावित्री की मूर्ति को भी स्थापित करें। दोनों टोकरियों को बरगद के पेड़ के नीचे रख दें और ब्रह्मदेव और सावित्री की मूर्तियों की पूजा करें।
- उसके बाद सत्यवान और सावित्री की मूर्तियों की पूजा करें। बरगद के पेड़ की पूजा के लिए जल, फूल, रोली-मौली, कच्चा कपास, भीगा हुआ चना, गुड़ आदि चढ़ाएं और जलाभिषेक करें।
- बरगद के पेड़ के तने के चारों ओर एक कच्चा धागा लपेटें और उसकी तीन बार परिक्रमा करें।
- इसके बाद महिलाओं को वट सावित्री व्रत की कथा सुननी चाहिए। कहानी सुनने के बाद भीगे हुए चने निकाल लें और उस पर कुछ पैसे रखकर अपनी सास को दे दें। जो महिलाएं अपनी सांसों से दूर रहती हैं, उन्हें बयाना भेजकर उनका आशीर्वाद लें। पूजा समाप्त होने के बाद ब्राह्मणों को वस्त्र और फल आदि का दान करें।
वट सावित्री पूजा का शुभ मुहूर्त
वट सावित्री व्रत पूजा की सामग्री
- बरगद के पत्ते (Banyan leaves)
- लाल कलावा या मौली या सूत (Red Kalava or Molly or Soot)
- बांस का पंखा (bamboo fan)
- लाल वस्त्र पूजा में बिछाने के लिए (Red cloth for laying in worship)
- कुमकुम या रोली (kumkum or roli)
- फल (Fruit)
- पुष्प (flowers)
- धूप-दीप (Incense lamp)
- जल भरा हुआ कलश
- चना (भोग के लिए)
- मूंगफली के दाने (peanuts)
- सुहाग का सामान (wedding accessories)
वट सावित्री पूजा का महत्व
वट सावित्री व्रत पूजा की आरती
अश्वपती पुसता झाला।।नारद सागंताती तयाला।।अल्पायुषी सत्यवंत।।सावित्री ने कां प्रणीला।।आणखी वर वरी बाळे।।मनी निश्चय जो केला।।आरती वडराजा।।1।।
दयावंत यमदूजा।सत्यवंत ही सावित्री।भावे करीन मी पूजा।आरती वडराजा ।।ज्येष्ठमास त्रयोदशी।करिती पूजन वडाशी ।।त्रिरात व्रत करूनीया।जिंकी तू सत्यवंताशी।आरती वडराजा।।2।।
स्वर्गावारी जाऊनिया।अग्निखांब कचलीला।।धर्मराजा उचकला।हत्या घालिल जीवाला।येश्र गे पतिव्रते।पती नेई गे आपुला।।आरती वडराजा।।3।।
जाऊनिया यमापाशी।मागतसे आपुला पती।चारी वर देऊनिया।दयावंता द्यावा पती।आरती वडराजा ।।4।।
पतिव्रते तुझी कीर्ती।ऐकुनि ज्या नारी।।तुझे व्रत आचरती।तुझी भुवने पावती।।आरती वडराजा ।।5।।
पतिव्रते तुझी स्तुती।त्रिभुवनी ज्या करिती।।स्वर्गी पुष्पवृष्टी करूनिया।आणिलासी आपुला पती।।अभय देऊनिया।पतिव्रते तारी त्यासी।।आरती वडराजा।।6।।
वट सावित्री पूजा से संबंधित कुछ सुविचार
जोड़ी तेरी मेरी कभी न टूटे,हम तुम कभी एक दूजे से ना रूठे,हम दोनों सात जन्मों तक साथ निभाएंगे,हर पल मिलकर खुशियां मनाएंगेवट सावित्री 2023 की हार्दिक शुभकामनाएं...
आज मुझे आपका खास इंतेजार है,ये दिन है वट सावित्री व्रत का,आपकी लंबी उम्र की मुझे दरकार है,वट सावित्री पर हार्दिक शुभकामनाएं।
रखा है व्रत मैंने,बस एक ख्वाहिस के साथलंबी हो उम्र आपकी और हर जन्म में मिले आपका साथ,वट सावित्री 2023 की हार्दिक शुभकामनाएं...
सुख-दुख में हम तुमहर पल साथ निभाएंगेएक जन्म नहीं सातों जन्महम पति-पत्नी बन जाएंगे।Happy Vat Savitri 2023
एक फेरा प्यार के लिएएक फेरा लंबी आयु के लिएएक फेरा तेरे-मेरे साथ के लिएऔर मिल जुलकर सुंदर संबंध निभाने के लिए।वट सावित्री 2023 की हार्दिक शुभकामनाएं...
संग आये लाए खुशियां हजार,हर साल मनाए वट सावित्री का त्यौहारभर दे हमारा दामन खुशियों के साथदे जाए उम्र तुम्हें हजार-हजार साल।Happy Vat Savitri 2023
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