हल्दी रस्म या फिजूली खर्च - एक सुविचार यह भी
Haldi Rasam Ya Fijul Kharchi
नमस्कार दोस्तों, आज हम सुविचार के इस ब्लोग में हल्दी रस्म या फिजूली खर्च पर बात करने जा रहे हैं। आजकल बहुत से गरीब अमीरों की तरह दिखने के चक्कर में पिस रहा है। अब ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाली शादियों में बहुत से ऐसे रस्म होने लगे है जिसमें दिखावे करने के चक्कर में फिजूली खर्च बहुत अधिक होने लगा है। जिसकी वजह से एक गरीब मां-बाप पर शादि के खर्च का बोझ बढ़ता जा रहा है। इन नई रस्मों में एक रस्म हल्दी रस्म भी है। चलिए इसकी जांच पड़ताल करते हैं तथा आइये इस लेख में छुपे विचारों को समझते हैं।
हल्दी का रस्म पूरी करें, बेफजूल खर्ची नहीं,
नहीं तो इससे धन और इज्जत दोनों खत्म हो जायेगी।
अमीरों के चक्कर में बेचारें गरीब मां-बाप पिस रहा हैं
हल्दी का रस्म के दौरान अब हजारों रुपए खर्च करके विशेष प्रकार की सजावट की जाती है। इस दिन पर दिन दूल्हा या दुल्हन विशेष पीले कपड़े पहनते हैं। कुछ साल से पहले हल्दी के रस्म में इस प्रकार का चलन ग्रामीण इलाकों कम ही देखने को मिलता था, लेकिन पिछले दो-तीन सालों में ग्रामीण इलाकों में इसका चलन बहुत तेजी से बढ़ चुका है। जिसकी वजह से शादि के खर्च में एक अतिरिक्त बोझ बढ़ गया है।
पुराने जमाने में हल्दी के रस्म पर दिखावा नहीं होता था। अब लोग इस रस्म पर बहुत अधिक दिखावा करने लगें है। दुल्हा-दुलहन अब अपने साज-सजावट में लाखों रुपये खर्च करने लगे हैं। जबकि पहले केवल हल्दी के उबटन से घिसघिस कर दूल्हे-दुल्हन को सुंदर बना दिया जाता था। यह जिम्मेदारी पहले केवल महिलाओं की होती थी। अब तो इस प्रक्रियां में पुरुष भी बराबर का हिस्सेदारी निभाने लगे हैं। इसमें कोई गलत बात नहीं लेकिन इसके लिए अधिक दिखावा की जाए और बेफजूल खर्च किया जाए तो यह तो गलत है।
पुराने जबाने में जहां पहले घर पर ही हल्दी का रस्म पुरा किया जाता था वही आजकल हल्दी रस्म के लिए भी बड़े-बड़े मैरिज मैरिज हॉल बुक किये जाते हैं। जिसमें लाखों रुपये मां-बाप के खर्च हो जाते हैं। कई बार तो दुलाह-दुलहन अपने इस रस्म को लोगों को दिखाने के लिए सोशल मीडियों पर इसके लाई कार्यक्रम भी कर रहे हैं जो दिखावा नहीं तो क्या है।
आज ग्रामीण क्षेत्र में आर्थिक रूप से असक्षम परिवार के लड़के - लड़कियां भी शहरी बनावटीपन में शामिल होकर मां-बाप के मेहनत की कमाई को बेफजूल में उड़ा रहे हैं। हल्दी का रस्म जो केवल कुछ हजार रूपये में सम्पन्न हो सकता है उसमें लाखों रुपये खर्च करने का क्या आवश्यकता है। बहुत से लड़के-लड़कियां अपने मां-बाप से जिद्द करते हैं कि महंगे से महंगे कैमरा, घर क डेकोरेशन और बहुत से दोस्तों को शादि के इस रस्म में बुलाना है। वह भी सिर्फ इसलिए कि वे अपनी इस रस्म की वीडियों, रील या शोर्ट्स को इंस्टाग्राम, फेसबुक या यूट्यूब पर अपलोड कर सकें। अब आप जरा सोचें की केवल एक रस्म को पुरा करने के लिए क्य वेबफजूल खर्च करना आवश्यक है। मेरे ख्याल से नहीं। तो फिर आजकल के दुल्हा-दुलहन क्यों अपने मां-बाप के खर्च को बढ़ा रहे हैं।
अब बहुत से ग्रामीण क्षेत्रों के लड़के - लड़कियां भी वेबफजूल खर्ची में पैसा पानी बर्बाद कर रहे हैं। इनके मां-बाप बहुत अधिक मेहनत करके पसीने की कमाई से पाई-पाई जोड़कर मकान तैयार करते हैं लेकिन लड़के-लड़कियां बिना समझे मां-बाप की हैसियत से विपरीत हल्दी का रस्म पूरा कर रहे हैं।
जब मां-बाप इसके इसके लिए तैयार नहीं होते तो बहुत से बच्चे उनको गंवारू, पिछड़ा और पुराने जमाने का कहकर मजाक बनाते हैं तथा उनकी इज्जत को तार-तार करते हैं। अब आप सोचे की यह सही है या गलत।
किसी भी रस्म पर फिजूलखर्ची करना ठीक नहीं वह भी केवल इसिलए की जमाने को शोसल मीडियां पर दिखाना है।
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