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एक नई मंजिल की तलाश: पूजा की प्रेरक कहानी

 Pooja Ki Prerak Kahani - Ek Manjil Ki Talash (पूजा की प्रेरक कहानी)

Kashi Railway Station के बाहर भीड़ बढ़ रही थी। May की तपती गर्मी में हर किसी को अपने मंजिल पर पहुंचने की जल्दी थी, लेकिन वहाँ खड़ी पूजा अपनी रिक्शा पर सवारी के इंतजार में थी। पूजा, एक अकेली लड़की थी, जो वहां पर रिक्शा चलाया करती थी। लोग उसे देखते और सोचते, "लड़की है, कमजोर होगी, ये क्या रिक्शा चला पाएगी?" और आगे की ओर बढ़ जाते।

May की गर्मी और इंतजार की घड़ियो में पूजा पसीने में भीग चुकी थी। उसके चेहरे पर थकान दिखने लगी थी, पर उसकी मुस्कान बनी हुई थी। तभी एक युवक उसके पास आया और पूछा, "बीएचयू हॉस्टल चलोगी क्या?"

पूजा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हां, तीस रुपये लगेंगे।" युवक ने बोला ठीक है और रिक्शा में बैठ गया। पूजा खुश थी, उसे आखिरकार एक सवारी मिल गई थी।

Ek Manjil Ki Talash

रास्ते में सवाल और जवाब

रिक्शा चलते समय युवक के मन में कुछ सवाल उठे। उसने पूछा, "तुम कब से रिक्शा चला रही हो?"

पूजा ने बिना झिझक कहा, "दो साल हो गए साहब।"

युवक ने आगे पूछा, "घरवाले तुम्हें रिक्शा चलाने से नहीं रोकते?"

पूजा ने धीरे से कहा, "साहब, मेरे कोई घरवाले नहीं हैं। मां तो बचपन में ही चली बसी थीं, और बाबा भी मुझे 12 साल की उम्र में छोड़कर चले गए। बाबा भी रिक्शा चलाते थे। उनकी यादों के साथ मैंने ये सफर शुरू किया है साहब।"

बाबा की आखिरी निशानी

युवक ने देखा कि पूजा का रिक्शा मोटर से चल रहा था। उसने पूछा, "तुम्हारे रिक्शे में तो मोटर लगी है, ये कब से?"

पूजा ने गर्व से कहा, "बाबा के जाने के बाद मैंने पैसे बचाकर इस रिक्शे में मोटर लगवा ली। यह उनकी आखिरी निशानी है। जब मैं इसे देखती हूं, तो लगता है कि मैंने उनके थके हुए पैरों को कुछ राहत दी है।"

अनजान खत: एक अनोखा प्रस्ताव

युवक जब मंजिल पर पहुंचा, तो पूजा को 500 का नोट दिया और चला गया। घर आकर पूजा ने जब 500 के नोट देखा, तो उस 500 के मुडे हुए नोट में से एक कागज निकला। पूजा पढ़-लिख नहीं सकती थी, इसलिए वह कागज को समझ नहीं सकी।

उसकी जिज्ञासा ने उसे पढ़ना सिखने पर मजबूर किया। कई महीनों की मेहनत के बाद, पूजा ने कुछ पढ़ना सीख लिया और वह कागज निकाला। उसमें लिखा था:

"तुम्हारी सादगी और अपने पिता के प्रति तुम्हारा प्रेम ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। मैं मोहित हूँ और मैं चाहता हूँ कि तुम मुझसे मिलो। पंद्रह दिनों के भीतर वहीं आओ, जहाँ तुमने मुझे छोड़ा था। मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा।"

"तुम बहुत प्यारी हो। तुम्हारी सादगी और अपने पिता के प्रति तुम्हारा समर्पण मुझे बहुत प्रभावित करता है। अगर तुम मुझसे मिलना चाहो, तो पंद्रह दिनों के अंदर वहीं आओ, जहां तुमने मुझे छोड़ा था। मैं हर दिन तुम्हारा इंतजार करूंगा। मैं तुम से शादी करना चाहता हूं"

देर से आया संदेश और पछतावा

खत पढ़ते ही पूजा के आंसू निकल आए। वह युवक, जिसने उसके रिक्शे में कुछ समय बिताया था, उसे जीवनभर साथ देने का प्रस्ताव दे गया था। काश! वह समय पर यह खत पढ़ पाती। काश! वह मोहित से मिल पाती। लेकिन अब वह सिर्फ पछतावा कर सकती थी। वह फिर से अपनी रिक्शा लेकर चल पड़ी, अपनी सवारियों को उनकी मंजिल तक पहुंचाने।

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दोस्तों इस कहानी से  क्या शिक्षा मिली,  चलिए कुछ सुविचार के माध्यम से समझते है-

इस कहानी ने क्या सुविचार दियें:


कड़ी मेहनत से कोई भी रास्ता पार किया जा सकता है, बस अपने लक्ष्य पर नज़र बनाए रखे।


सच्चा प्यार वही होता है, जो बिना शर्त जीवनभर का साथ देने का वादा करें।


पिता का आशीर्वाद और यादें हमेशा हमारे दिल को मजबूत और शकुन देता है।


हर संघर्ष आपको आपके उद्देश्य के करीब लाता है, बस हार न मानें।


वक्त की कद्र करना सीखो, क्योंकि जो समय निकल जाता है, वह कभी लौटकर नहीं आता।


सपनों का पीछा करो, भले ही राह में कांटे हों, क्योंकि जो मेहनत से नहीं डरते, वही अपने भाग्य को खुद लिखते हैं।

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