करवा चौथ व्रत 2024: महत्वपूर्ण विवरण और शुभ समय
नमस्कार दोस्तों, मैं VS Chandravanshi एक बार फिर से आपका स्वागत करता हूं, अपने ब्लोग Suvichar4u पर। आज हम अपने इस blog में करवा चौथ व्रत की बात करेंगे। Karva Chauth Vrat रविवार, 20 अक्टूबर 2024 को पूरे भार में मनाया जायेगा।
इस वर्ष Karva Chauth त्यौहार विशेष रूप से बहुत शुभ होने वाला है क्योंकि यह पाँच लाभकारी ज्योतिषीय योगों- गजकेसरी, बुधादित्य और शश योग के निर्माण के साथ मेल खा रहा है। इसलिए जो भी स्त्रियां इस व्रत को रखेंगी उसको इसका बहुत अच्छा फल मिलने वाला है। चलिए इस ब्लोग के माध्यम से पहले करवा चौथ के बारे में कुछ अच्छी जानकारी को पढ़ते हैं।
चलिए सबसे पहल मैं यहां पर आपको Karva Chauth के मुख्य तिथियाँ और समय की जानकारी देता हूं ताकि आपको यह पता लग जाये कि व्रत की शुरूआत कब करनी है।
मुख्य तिथियाँ और समय
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, चतुर्थी तिथि (Chaturthi Tithi) अथार्त 20 अक्टूबर को सुबह 6:46 बजे से करवा चौथ शुरू होगी और 21 अक्टूबर को सुबह 4:17 बजे पर समाप्त होगी। लेकिन व्रत (fast) तोड़ने का समय 20 अक्टूबर को चंद्रोदय रात 8:18 बजे होगा। यही वह समय है जब महिलाएँ पारंपरिक रूप से चांद और अपने पति को देखकर व्रत तोड़ती हैं।
सरगी का समय:
करवा चौथ व्रत से पहले का भोजन का समय (Sargi) 20 अक्टूबर को सूर्योदय (sunrise) से पहले सुबह 3:12 बजे से 4:37 बजे के बीच होगा।
पूजा का समय:
करवा चौथ पूजा के लिए सबसे अच्छा समय शाम 5:46 बजे से शाम 7:09 बजे के बीच होगा। व्रत सुबह 6:25 बजे शुरू होगा और शाम 7:54 बजे के बाद समाप्त होगा। अथार्त व्रत का कुल अवधि (the total duration of the fast) 13 घंटे 29 मिनट का होगा।
करवा चौथ (Karwa Chauth) का त्यौहार है प्रेम और त्याग का, पति-पत्नी के अटूट विश्वास और स्नेह का प्रतीक है। करवा चौथ की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
चलिए अब सरगी क्या है इसे समझते हैं और इसके महत्व को जानते हैं-
सरगी का महत्व
Karwa Chauth Vrat की शुरुआत सरगी खाने की रस्म से शुरू होती है। यह भोजन सास द्वारा तैयार किया गया एक प्रकार का भोजान का थाली और उसमें बहुत सुहाग से संबंधित चीजे होती है जो सास अपने बहू को प्यार और आशीर्वाद के साथ देती है। यही रस्म सरगी कहलाती है। यदि सास मौजूद नहीं है, तो परिवार की कोई भी बड़ी महिला सरगी दे सकती है। सरगी की थाली में आमतौर पर कुमकुम, बिंदी, साड़ी, सिंदूर, मेहंदी, बिछिया, सूखे मेवे, मिठाई, ताजे फल और प्रतीकात्मक धन (शगुन) जैसी चीजें शामिल होती हैं।
करवा चौथ पर सरगी का होना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक प्रकार का परंपरा है और हिंदू धर्म का कोई भी त्यौहार बिना परंपरा को अपनाये की जाए तो उसका फल और लाभ पूरा नहीं मिलता है।
चलिए अब सबसे पहले जान लेते हैं कि करवा क्या होता है।
करवा क्या है?
Karwa Chauth Vrat करने के लिए हमेशा करवा की जरूरत होती है। यह एक प्रकार का मिट्टी का बर्तन होता है जो काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर तैयार की जाती है। इसी बर्तन को करवा कहा जाता है। बहुत से लोग पूजा में तांबे के बने करवा का भी उपयोग करते हैं जिस वजह से पूजा में दो करवा का इस्तेमाल हो जाता है।
व्रत की शुरूआत
करवा चौथ का व्रत करने के लिए करवा पर रक्षासूत्र बांधकर, उस पर हल्दी और आटे के सम्मिश्रण से एक स्वास्तिक बनाया जाता है। इसके बाद एक करवे में जल और दूसरे में चांदी या ताम्बे के सिक्के डाले जाते हैं।
जब करवा चौथ व्रत की शुरूआत होती है तो सास बहू को करवा देती है और उसी प्रकार से बहू भी सास को करवा देती है। जब पूजा करते हैं और करवा चौथ की कथा सूनते हैं तो उस समय दो करवे रखने होते हैं।
एक करवा से महिलाए अर्घ्य देती है। यह करवा वह होता है जो सास ने दिया होता है। दूसरा वो करवा होता है जिसमें पानी बरकर बायाना देते समय उनकी सास देती है।
इसके बाद सास इस पानी को किसी पौधे में डाल देती है और अपने पानी वाले लोटे से चंद्रमा को अर्घ्य देती है।
मिट्टी का करवा इसलिए लिया जाता है क्योंकि उसे डिस्पोज किया जा सकें। कुछ महिलाएं मिट्टी के करवा की जगह पर स्टील के लोटे का भी प्रयोग करती है। करवा चौथ के व्रत करने की विधि में कही कही पर थोड़ा बहुत अंतर देखने को मिल सकता है क्योंकि भारत में कई तरह की जातियां है जिनमें करवा चौथ को करने को परंपरा और विधि में थोड़ा बहुत अंतर देखने को मिलता है। लेकिन करवा चौथ व्रत करने का उद्देश्य लगभग एक ही है।
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